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________________ आचार्य श्री विबुधप्रभसूरि और श्री जयानन्दसूरि (अट्ठाईसवें-उनतीसवें पट्टधर) आ० श्री मानदेवसूरि के पट्टधर आचार्य श्री विबुधप्रभसूरि हुए । आ० श्री विबुधप्रभसूरि के पट्ट पर आचार्य श्री जयानन्दसूरि आये । आपके उपदेश से पोरवाल मन्त्री सामन्त ने हमीरगढ, बीजापुर, बरमाण, नांदीया, बामणवाडा और मुहरी नगर में संप्रतिकालीन मन्दिरों का जीर्णोद्धार करवाया । वि०सं० ८६१ में करहेडा पार्श्वनाथ तीर्थ की स्थापना भी आपने की। आचार्य श्री शीलगुणसूरि | आचार्य श्री शीलगुणसूरि विक्रम की आठवीं शती के उत्तरार्ध में महान् प्रभावक आचार्य हुए । गुजरात के राजा वनराज चावडा को उसके बाल्यकाल में आपने ही रक्षण और शिक्षण दिया था । आपके शिष्य आचार्यदेव श्रीचन्द्रसूरि हुए जिनकी मूर्ति पाटण के पंचासरा मन्दिर में आज भी विद्यमान है । वनराज चावडा विक्रम की आठवीं शती के पूर्वार्ध में पंचासर (गुजरात) में जयशिखरी चावडा राज्य करता था । कन्नोज के राजा भुवड ने जयशिखरी को युद्ध में मार दिया । उसकी गर्भवती रानी ने वन में वि०सं० ७५२ वैशाखी पूर्णिमा के दिन वनराज को जन्म दिया । वनराज ने वि.सं. ८०२ में अणहिलपुर पाटण की स्थापना की और पंचासरा पार्श्वनाथ भगवान का मन्दिर बनवाया, जिसमें पूजकभाव की अपनी मूर्ति भी रखवाई । वनराज के गुजरात राज्य की स्थापना में आचार्य शीलगुणसूरि की कृपा तथा बुद्धिमान् जैनों का पूरा साथ था । यह पराक्रमी और न्यायप्रिय राजा था । १०९ वर्ष की उम्र में अनशन कर परलोक सिधार गया। महापराक्रमी चांपराज, नीना और आशक वनराज के जैन मंत्री थे । राजा भर्तृभट (चितौड) राजा भर्तृभट बाप्पा रावल का प्रपौत्र था। इसने भटेवर के किले में गृहिलविहार नाम का जिनालय बनवाकर आ. श्री बुढागणी ने विक्रम की आठवीं शती में (४२)
SR No.022704
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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