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________________ आचार्य श्री समुद्रसूरि (छब्बीसवें पट्टधर) - आचार्य श्री नरसिंहसूरि के पट्ट पर आद्य शिलादित्य के वंशज और मेवाड के के राणा बप्पा रावल खुमाण के कुलज आचार्य श्री समुद्रसूरि आये । पश्चात् खुमाण वंश मेवाड में शिसोदिया वंश के नाम से प्रसिद्ध हुआ । आ. श्री समुद्रसूरि ने दिगम्बरों को वाद में जीत कर नागदा तीर्थ में संप्रतिकालीन श्री पार्श्वनाथ भगवान् के तीर्थ की रक्षा की। वर्तमान काल में नागदा तीर्थ में श्री शान्तिनाथ प्रभु की नौ फुट की प्रतिमा से शोभित जिनालय अदबदजी के नाम से प्रसिद्ध है । बप्पा रावल (शिसोदिया वंश का आदिपुरुष) बप्पा रावल वल्लभीवंश के आद्य शिलादित्य का वंशज है । चितौड के मौर्य राजा को मारकर यह राजा बन बैठा था । इसका आयुष्य १०० वर्ष का था । अनेक रानियों से उत्पन्न इसके १३० पुत्र थे । यह संभवत विक्रम की छठी सदी में हुआ है। आचार्य श्री मानदेवसूरि द्वितीय (सत्ताईसवें पट्टधर) आचार्य श्री समुद्रसूरि के पट्टधर आचार्य श्री मानदेवसूरि हुए । ये प्रसिद्ध श्रुतधर याकिनीपुत्र आचार्य श्री हरिभद्रसूरि के मित्र थे । बीमारी के कारण आप सूरिमंत्र को भूल गये थे । अतः आपने गिरनार तीर्थ में जाकर तपस्या की और अंबिका देवी द्वारा श्री सीमन्धरस्वामी से पुनः सूरिमन्त्र पाया था । याकिनीमहत्तरापुत्र आचार्य श्री हरिभद्रसूरि आचार्य श्री हरिभद्रसूरि पूर्वपर्याय में चितौड के राजा जितारि के पुरोहित थे । आप प्रकांड विद्वान, वादी और प्रभावशाली थे । एक बार रास्ते में जाते समय उपाश्रय में स्वाध्याय कर रही साध्वीजी के मुख से निम्न गाथा सुनी चक्किदुगं हरिपणगं, पणगं चक्कीण केसवो चक्की । केसव चक्की केसव, दुचक्की केसव चक्की य ॥ १ ॥ अर्थ- एक के बाद एक इस तरह-दो चक्री, पांच वासुदेव, पांच चक्री, एक केशव, एक चक्री, एक केशव, दो चक्री, एक केशव और एक वासुदेव हुए हैं । (३९)
SR No.022704
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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