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________________ उसके भाई चन्द्रगुप्त द्वितीय ने उसे मरवा डाला और स्वयं राजा बन बैठा । रामगुप्त की पत्नी ध्रुवस्वामिनी के साथ शादी भी की। ____ अल्लाहबाद के कीर्तिस्तम्भ में वर्णन है कि- इसने गोरखपुर, काशी, बंगाल, बिहार, राजस्थान, मालवा और दक्षिण में कांची तक अपनी आज्ञा प्रवर्तायी थी। कुमारगुप्त के पश्चात् स्कन्दगुप्त राजगद्दी पर आया । ___भारत में हूणों का आगमन, सत्ता और पतन हुणों का एक काफिला फारस से तिब्बत होकर भारत में आया। उसने सम्राट कुमारगुप्त के समय में ई.स. ४०० के आसपास कन्धार को लूटा । दूसरी बार ई.स. ४५० के करीब हूण भारत में आये, परन्तु ई.स. ४५५ में सम्राट् स्कन्दगुप्त ने इनका सामना किया और आगे बढ़ने से रोका। हूण सम्राट् तोरमाण और मिहिरकुल अन्त में हूण सम्राट तोरमाण ने कन्धार, सौराष्ट्र, गुजरात, मत्स्य, मध्यप्रदेश, एरन, बुन्देलखण्ड और मालवा को जीत कर भारत में हूण साम्राज्य की स्थापना ई.स. ५०० में की । यह ई.स. ५०२ में परलोक का अतिथि हुआ । उसका पुत्र मिहिरकुल गद्दी पर आया । यह बडा बहादुर था । ई.स. ५१७ में इसने काश्मीर को जीतकर सिन्ध और सिन्ध के आसपास के प्रदेश को भी जीत लिया था । अन्त में गुप्त सम्राट् बलादित्य, मालवराज यशोवर्मा, वल्लभीपति ध्रुवसेन, कन्नोजराज आदित्यवर्मा, थानेश्वरनरेश नरवर्मा वगैरह ने मिलकर मिहिरकुल का सामना किया । ई.स. ५२८ में मन्दसौर के पास इसे बुरी तरह से पराजित होना पड़ा और भारत छोड कर भाग जाने को विवश होना पडा । मन्दसौर के विजयस्तम्भों में उक्त वृत्तान्त का उल्लेख आज भी विद्यमान है । ई.स. ५४० में मिहिरकुल की मृत्यु हुई। इस तरह हूणों का पतन हुआ । ई.स. ६४८ में हूणों की रही-सही सत्ता का सदा के लिए नाश थानेश्वर के राजा हर्षवर्धन ने किया। आचार्य श्री हारिल अपर नाम हरिगुप्त आचार्य श्री हारिल अपर नाम हरिगुप्त गृहस्थ अवस्था में अहिछत्रा नगरी के गुप्तवंशी राजा थे । वैराग्य पाकर जैनी दीक्षा ली थी । हूण-सम्राट तोरमाण और मिहिरकुल आपको गुरु मानते थे । आप युगप्रधान पद पर वी.नि.स. १००० से १०५५ तक रहे । (३५)
SR No.022704
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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