SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आपके इस महान् त्याग और तप से पद्मा, जया, विजया और अपराजिता नाम की देवियों द्वारा आपको उपासित देखकर एक बार तक्षशिला से आये हुए वीरचंद नाम के महाजन को आपके प्रति शंका हुई, तब देवियों ने उसे शिक्षा दी। 'लघु शान्तिस्तव' की रचना कर आपने तक्षशिला में प्रवृत्त महामारी के उपद्रव को शान्त किया था । तथा व्यन्तर के उपद्रव का निवारण करने के लिए 'तिजयपहुत्त' स्तोत्र बनाया। पंजाब और सिन्ध में अनेक स्थानों के राजपूतों को उपदेश देकर जैनधर्मी बनाया था । ब्रह्मद्वीपिक आर्य सिंह आर्य रेवतीमित्र के बाद ब्रह्मद्वीपिका शाखा के आर्य सिंह युगप्रधान पद पर वी.नि. ७४७ से ८२५ तक रहे। आचार्य श्री नागार्जुन और श्री स्कन्दिलाचार्य तथा चौथी आगमवाचना आर्य सिंह के अनुगामी आचार्य श्री नार्गाजुन युगप्रधान पद पर वी.नि. ८२५ से ९०३ तक रहे । वल्लभी में वी.नि. ८३० को चौथी आगमवाचना के आप प्रमुख थे। माथुरी वाचना के अनुसार आर्य सिंह के बाद आर्य स्कन्दिल युगप्रधान हुए । इनकी प्रमुखता में उत्तर मथुरा में चौथी आगमवाचना हुई, तब इनके शिष्य आचार्य श्री गन्धहस्ती भी साथ थे । यह वाचना माथुरी वाचना कहलाई। आचार्य श्री गन्धहस्ती आचार्य श्री गन्धहस्ती तीन पूर्वो के ज्ञाता थे । आर्य स्कन्दिल की प्रेरणा से आपने ग्यारह अंगों का विवरण तथा तत्त्वार्थसूत्र पर ८०,००० श्लोकप्रमाण भाष्य रचा था। __माथुरी वाचना के अनुसार आर्य स्कन्दिल के बाद आर्य हिमवन्त युगप्रधान हुए, जिनकी रची हिमवन्त-स्थविरावली बहुत प्राचीन है । आर्य हिमवन्त के अनुगामी युगप्रधान आचार्य श्री नागार्जुन का उल्लेख है जो वल्लभीवाचना के अनुसार भी वी.नि. ८२५ से ९०३ तक युगप्रधान हैं । (३२)
SR No.022704
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy