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________________ जैनधर्म की प्रभावना अवन्ती में एक बार रथयात्रा में पधारे हुए आर्य सुहस्ती के दर्शन मात्र से संप्रति महाराजा को जातिस्मरण ज्ञान हो गया । पूर्वजन्म के उपकारी आचार्य भगवंत की कृपा से सुसमृद्ध विशाल साम्राज्य की प्राप्ति, मनुष्य जन्म की दुर्लभता आदि का ज्ञान होने पर १२५००० (सवा लाख) मन्दिर, १२५००००० (सवा करोड) नूतन प्रतिमाएँ निर्मित करवाई । ३६००० (छत्तीस हजार) मन्दिरों का जीर्णोद्धार करवाया, पिचानवें हजार धातु की प्रतिमाओं एवं ७०० (सात सौ) दानशालाओं से भारत भूमि को भूषित किया । इनके नियमानुसार एक दिन भी ऐसा व्यतीत न हुआ कि जिस दिन नये मन्दिर का शिलान्यास हुआ न हो । राजस्थान, मालवा, गुजरात और काठियावाड संप्रतिकाल के अनेक मन्दिर और मूर्तियों के आज भी दर्शन होत हैं। महाराजा संप्रति ने अवन्ती में जैन श्रमणों के सम्मेलन का आयोजन कर अपने राज्य में जैन धर्म की प्रभावना करवाई। अनार्य देशों में भी जैन धर्म के आचारों का प्रचार करवाया । आज भी अमेरिका, मंगोलिया और आष्ट्रिया के बुडापेस्ट की खुदाई में जो जिन-प्रतिमाएँ एवं उनके अवयव मिले हैं वे सभी संप्रतिकालीन हैं । यह राजा वी.नि. ३४५ में स्वर्गवासी हुआ । अवन्ती पार्श्वनाथ तीर्थ इन्हीं आर्य सुहस्ती के पास भद्रा सेठानी के पुत्र अवन्तीसुकुमाल ने ३२ पत्नियों का त्यागकर दीक्षा ली थी। दीक्षा समय ही गुरु-आज्ञा से श्मशान में जाकर अनशन स्वीकारा । रात के समय वहाँ रहे मुनि के शरीर को एक शृगाली और उसके बच्चों ने खा लिया । मुनि की आत्मा समतापूर्वक उपसर्ग सहकर देवलोक में उत्पन्न हुई। इस वृतान्त से भद्रा माता और उनकी पुत्रवधुओं को वैराग्य उत्पन्न हुआ । एक गर्भवती पुत्रवधू को छोडकर भद्रा माता ने इकत्तीस पुत्रवधूओं के साथ दीक्षा ली। बाद में अवन्तीसुकुमाल की उस गर्भवती पत्नी ने महाकाल नाम के पुत्र को जन्म दिया । इसी महाकाल ने अपने पिताकी स्मृति में श्रीअवन्ती पार्श्वनाथ का गगनचुंबी मन्दिर बनवाया, जिसका दूसरा नाम महाकाल का मन्दिर था । यही मन्दिर राजा पुष्यमित्र के समय में महादेव का मन्दिर बन गया था। बाद में महाराजा विक्रमादित्य के समय में आचार्य श्री सिद्धसेन दिवाकर सूरिजी ने इस मन्दिर में श्री पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा प्रकट की । आज यह स्थान अवन्ती (१७)
SR No.022704
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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