SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मनक-पिता श्री शय्यंभव (चतुर्थ पट्टधर ) श्री शय्यंभव ने जब दीक्षा ली तब उनकी पत्नी गर्भवती थी । दीक्षा के बाद पुत्र जन्मा जो मनक के नाम से प्रसिद्ध हुआ । आठ वर्ष की उम्र के मनक को भी श्री शय्यंभव ने दीक्षा दी। इसी दीक्षित पुत्र के हितार्थ चंपा नगरी में श्री शय्यंभव ने 'दशवैकालिक सूत्र' की रचना की । श्री शय्यंभव ने २८ वर्ष की उम्र में दीक्षा ली, ११ वर्ष तक सामान्य व्रत पर्याय का पालन किया और २३ वर्ष तक युगप्रधान पद पर रहकर ६२ वर्ष की आयु पूर्ण कर वी.नि.सं. ९८ में वे स्वर्गवासी हुए । इनके पट्ट पर श्री यशोभद्रसूरि आये । श्री यशोभद्रसूरि (पांचवें पट्टधर) श्री यशोभद्र सूरि ने २२ वर्ष की वय में दीक्षा ली । १४ वर्ष तक व्रत-पर्याय में रहे और ५० वर्ष तक युगप्रधान रहे । इस प्रकार ८६ वर्ष का आयुष्य पूर्ण कर वी.नि.सं. १४८ में स्वर्गवासी हुए । श्री संभूतविजय और श्री भद्रबाहुस्वामी (छट्ठे पट्टधर) आचार्य श्री यशोभद्रसूरि के पट्टधर दो समर्थ आचार्य हुए। पहले आचार्य श्री संभूतविजय जो २२ वर्ष की वय में दीक्षित हुए । ८ वर्ष तक सामान्य व्रतपर्याय में और ६० वर्ष तक युगप्रधान पद पर रहकर ९० वर्ष की उम्र में वी.नि.सं. २०८ में स्वर्गवासी हुए । इनके मुख्य श्रीस्थूलभद्रस्वामी हुए, जिनका वर्णन आगे करेंगे । आर्य संभूतविजय के युगप्रधान समय में लेखकों का प्रमाद हो गया है। पं कल्याणविजयजी के मत से किसी लेखक ने "सम्भूय सट्ठी" इस शुद्ध पाठ को बिगाडकर ‘“सम्भूयस्सट्ठ" बना दिया । अतः ६० के ८ बन गये । यह भूल आज कल की नहीं, कोई ८०० वर्षो से भी पहले की है । इसी भूल के परिणामस्वरूप श्री हेमचन्द्राचार्य ने श्रीभद्रबाहुस्वामी का स्वर्गवास वी.नि.सं. १७० लिखा है और इसी भूल के कारण पिछले पट्टावली लेखकों ने आर्य स्थूलभद्रस्वामीजी का स्वर्गवास वी.नि.सं. २१५ में लिखा है । (पट्टावलीपराग पृ. ५१) (१३)
SR No.022704
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy