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________________ यद्यपि ये दोनों सगे भाई थे तथापि एक दूसरे को पहचानते नहीं थे । अतः कालक्रम से अवन्तीषण ने सैन्य के साथ कोशाम्बी को घेर लिया। इसी अवसर पर साध्वी धारिणी ने वहाँ आकर उन दोनों भाइयों का परस्पर परिचय कराकर युद्ध अटकाया और स्नेह करवाया । इस प्रकार उज्जैन और कोशांबी के राजवंशों में वर्षों के वैरभाव का अन्त आया । इन दोनों राजाओं ने साथ मिलकर कोशाम्बी और उज्जयिनी के बीच वत्सका नदी के किनारे पर्वत की गुफा में श्रीजम्बूस्वामी के शिष्य मुनि धर्मघोष के अनशनपूर्वक स्वर्गगमन का महोत्सव किया । मुनि धर्मघोष जहाँ ध्यानस्थ रहे वहीं पर राजा अवन्तीषेण ने एक बड़ा स्तूप बनवाया जो साँची स्तूप के नाम से आज भी प्रसिद्ध है । राजा उदायी कोणिक की मृत्यु के बाद उसका पुत्र उदायी पाटलिपुत्र को मगध की राजधानी बनाकर राज्य करने लगा। वी.नि.सं. ६० में उसके किसी शत्रु ने उसे जैन धर्म के प्रति दृढ श्रद्धावाला समझकर साधु का वेष लेकर धर्मोपदेश के बहाने महल में जाकर मार डाला। राजा उदायी ने पाटलीपुत्र में जिनालय का निर्माण भी कराया था । उसी जिनालय की कुछ मूर्तियाँ आज भी कलकत्ता के म्युजीयम में विद्यमान हैं । नंदवंश का उत्थान और पतन राजा उदायी के नि:संतान मरने पर मन्त्रियों ने दिव्य परीक्षा करके मगध की राजगद्दी पर नन्दिवर्धन नाम के नाई-पुत्र को बैठाया । वी.नि.सं. ६० अर्थात् ई.पूर्व ४६७ में राज्याभिषेक हुआ । राज्याभिषेक के समय उज्जयिनी के राजा पालक ने अपनी पुत्री को इसी प्रथम नन्द के साथ ब्याही । पश्चात् इसी नन्द राजा ने मालव और वत्स देश को अपने आधीन किया । ___ इसी प्रथम नन्द राजा ने तक्षशिला और नालन्दा विद्यापीठों की स्थापना की जिनमें पाणिनि, वररुचि, चाणक्य, पतञ्जलि वगैरह विद्वान् तैयार हुए । मंत्री वंश कल्पक नाम के मन्त्री और उसके वंशजों ने मगध साम्राज्य को सुदृढ किया शकटाल और उसका पुत्र श्रीयक नौवें नन्द मन्त्री थे। (११)
SR No.022704
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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