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________________ आपके शिष्य आ. श्री भुवनसुन्दरसूरि भी बडे विद्वान् थे । इन्होंने 'महाविद्याविडम्बन' का टिप्पन, अर्थदीपिका और परब्रह्मोत्थापनवादस्थलादि ग्रन्थ रचे । आपके ही शिष्य आ. श्री जिनसुन्दरसूरि ने 'दीपावलीकल्प रचा। आ. श्री जयचन्द्रसूरि के शिष्य प. जिनहर्षगणि अपरनाम जिनहंसगणि भी बडे विद्वान् थे । इनकी ग्रन्थरचना निम्न प्रकार है :- रयणसेहरनरवईकहा, सम्यक्त्वकौमुदी, वस्तुपालचरित महाकाव्य, विंशतिस्थानक प्रकरण, प्रतिक्रमण-गर्भहेतु, आरामशोभा कथा इत्यादि । सोनी संग्रामसिंह खंभात के सोनी सारंग का वंशज महादानी नरदेव का पुत्र संग्रामसिंह बारह व्रतधारी श्रावक और परस्त्री-सहोदर था । यह मांडवगढ के बादशाह मुहम्मद खिलजी का खजानची और बाद में दीवान बना । बादशाह ने इसे 'जगत्-विश्राम' का बिरुद दिया था । यह विद्वान् और कवि था । इसने 'बुद्धि-सागर' ग्रन्थ की रचना की। _ वि.सं. १४७० में संग्रामसिंह ने आ. श्री सोमसुन्दरसूरि का मांडवगढ में चातुर्मास करवाया था। तब भगवती सूत्र के वांचन में प्रत्येक बार 'गोयमा' शब्द के श्रवण में स्वयं ने एक, इसकी माँ ने आधी और पत्नी ने पाव सोनामोहर कुल (३६०००+१८०००+९०००) ६३००० सोनामोहर अर्पण की थी। ___ संग्रामसिंह ने मांडवगढ में भगवान् सुपार्श्वनाथ का, मक्षीजी में भगवान् पार्श्वनाथ का, भेई, मन्दसौर, धार वगैरह स्थानों में १७ नये मन्दिर बनवाये और ५१ मन्दिरों का जीर्णोद्धार करवाया था ! शेठ धरणशाह और राणकपुर-तीर्थ शेठ मांडण अपरनाम सांगण सरहडिया गोत्र का पोरवाल नांदिया (जि. सिरोही) निवासी जैन था । यह संपन्न और धर्मनिष्ठ था । इसके दो पुत्र थे, जिनका नाम कुंवरपाल और निंबा था । इन्होंने वि.सं. १४६५ में पिन्डवाडा के जिनमन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया था । (१०८)
SR No.022704
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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