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________________ 61 भगवंत के उद्यान में आने के बाद कुछ दिनों में ही भीम राजा का दूत कार्यवश बलसार की राजसभा में आया । प्रसंगोपात मरकी की बात निकली । तब दूतने अपने नगर की गजमारी की बात कहकर अतिबल राजर्षि के पुण्य प्रभाव की बात कही । और कहा मैं अभी आपके उद्यान में उन राजर्षि को दर्शन वंदनकर आ रहा हूँ ।" मुनि भगवंत का ऐसा महा प्रभाव सुनकर मुनि भगवंत के चरणों से स्पर्शित धूलि से रोगीष्ट मानवों के मस्तक पर तिलक होने लगा और प्रजा रोग मुक्त हो गयी । मुनियों की महिमा अपरंपार हैं । राजादि ने उद्यान में जाकर नमस्कारकर मुनि भगवंत द्वारा उपदेशित श्रावक धर्म का यथाशक्ति स्वीकार किया । वहाँ भी मासकल्प में धर्म प्रभावना की ज्योति जगाकर विहार करते हुए क्षेमापुरी में आये । मासखमण के पारणे के लिए नगर में गोचरी जाते समय गवाक्ष में रहे मिथ्यादृष्टि पुरोहित पुत्र ने जैनमुनि पर द्वेष, धन और यौवन के मद की उग्रता से मस्तक पर जूता मार दिया । मुनि भगवंत तो ऊपर देखे बिना मेरु के समान धीर गंभीर होने के कारण उस पर कृपा के भाव रखके आगे बढ़े । परंतु उनके तप प्रभाव से आकर्षित होकर शासन देवी ने अदृश्य रूप में पुरोहित पुत्र पर क्रोधित होकर उसके हाथ काट दिये । उस व्यथा से वह क्रंदन करने लगा । माता - पिता आदि के पूछने पर पश्चात्ताप करते हुए उसने मुनि आशातना का सारा वृतांत कह सुनाया । 'उग्र पाप का फल मुझे मिला ।' वे भी दुःखी हुए और उसे धिक्कारा । उस अनर्थ की उपशांति का अन्य उपाय न मिलने पर मुनि भगवंत के पास आकर नमस्कारकर हाथ जोड़कर बोले । " हे मुनिभगवंत । आप महाप्रभावशाली हैं, जगत्पूज्य हैं, सूर्य जैसे उल्लू की ओर दुर्लक्ष्य करता है, वैसे इस बालक ने
SR No.022703
Book TitleJayanand Kevali Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2002
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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