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________________ तत्पर देव गुरु पर भक्तिवाली बनी । अल्प आरंभवाली, पठन-पाठन में तत्पर देखकर पिताने उसे घर कार्य से निवृत्तकर धर्मध्यान में रत रहने की अनुमति दी । समय जाते हुए गुर्वादि सामग्री के अभाव से मठवासिनी एक परिव्राजिका के साथ आलाप संलाप करती देखकर पिता ने कहा "हे पुत्री! पाखंड़ी के परिचय से समकित को दुषित मत कर । इस प्रकार पिता के कहने पर भी गाढ़ प्रीति हो जाने से उसका साथ न छोड़ा । पड़ौस में सावित्री ब्राह्मणी, उसका पुत्र यज्ञदत्त और उसकी पत्नी अंजना रहते थे । यज्ञदत्त को अपनी पत्नी पसंद न थी । अचानक नंदिनी के पिता स्वर्गवासी हुए। यज्ञदत्त नंदिनी को प्रतिदिन देखते-देखते उस पर रागवाला हो गया । परंतु उसकी प्राप्ति न होने से वह कृशांग हो गया । एकबार माता के पूछने पर निर्लज्ज बनकर कारण बताया । माँ ने भी कहा-'खेद मत कर, मैं तेरे मनोरथ पूर्ण करूँगी । एकबार नंदिनी को सावित्री ने कहा' 'वत्से! तुझे धन्य है कि मेरा पुत्र तुझ से प्रेम करता है। अतः तू उसका स्वीकार कर । जिससे रूप लावण्य यौवन सफल हो जायँ । ऐसा सुनकर नंदिनी क्रोधित होकर बोली 'मूढ ! धिक्कार है तुझे । जो ऐसे कटु-वचन बोल रही है। प्राण का अंत होने पर भी मैं मेरा शील खंडित न होने दूंगी । शीलभ्रष्टता से तो नरक में पात होता है।' सावित्री मौन रहकर चली गयी। पुनः दो तीन बार ऐसा प्रयत्न किया । पर वह प्रयत्न विफल रहा । तब सावित्री ने परिव्राजिका का संपर्क किया । परिव्राजिका को कहा-'मेरे पुत्र पर नंदिनी अनुरागवाली हो वैसा तुम करो ।' उसने भी 'हाँ' कह दी। परिव्राजिका फिर एक कुत्ती को वश में कर पैरों पर गिरने आदि की चेष्टा की शिक्षा दी । एकबार नंदिनी के आने के समय पर रोती हुई उस कुत्ती को उसके पैरों पर गिराया । नंदिनी ने पूछा 'यह क्यों रो रही है ? परिव्राजिका ने कहा 'इसकी कथा सुन । पृथ्वीपुर नगर में दत्त विप्र की दो पुत्रियाँ एक अग्निदत्त को दी। उसके
SR No.022703
Book TitleJayanand Kevali Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2002
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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