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________________ में धारण करे, दूसरे पुरुष को दृष्टि से बुलाये, तीसरे को वचन से | आश्वस्त करे और रमण किसी ओर के संग करे ।' उसने पति पर इतना स्नेह बरसाया कि उसे कोई शंका उत्पन्न ही न हो। फिर थोड़े दिनों के बाद जाने की बात चली तब उसने एक और तैयारी कर ली। अपने वस्त्र सामान आदि सज्ज, करके शामको दंभ से ग्रहिलत्व दर्शाने लगी । मस्तक घूमाना, अंटसंट बोलना, अट्टहास करना, किसीको डराना, बर्तन फेंकना, बालकों को मारना, वस्त्र जैसे तैसे खुले करना, गाली देना, हंसना, रोना आदि कार्य प्रारंभ किया । घर के लोगों ने समझा कि इसे कोई प्रेतात्मा की पीड़ा हो गयी है । उपाय प्रारंभ किये । परंतु कोई फर्क नहीं पड़ रहा था । बहुत दिन निकल गये । कहा है 'जागते को कौन उठा सकता है? हरिवीर ने सोचा' 'अब मुझे अधिक दिन यहाँ रहना उचित नहीं।' ऐसा सोचकर उसने श्वसुर से जाने की बात कही । सुरदत्त ने भी सोचा ‘ऐसी हालत में वहाँ ले जाकर क्या करेंगे? उसने भी जाने की बात स्वीकारकर ली । हरिवर ने अपने नगर में आकर उसकी स्वस्थता हेतु कुदेवों की बलि पूजा की । शकुनिकों आदि को पूछा और जिसने ठीक होने का कहा उनको धनादि का दान दिया । जिसने जो जो उपाय बतायें, वे सब किये।' इधर हरिवीर के जाने के बाद उसी हालत में मधुकण्ठ के साथ क्रीड़ा करते, करते कुछ दिनों के बाद पुनः ठीक हो गयी । थोड़े दिनों के बाद सुरदत्त ने पुनः समाचार भेजे । हरिवीर लेने आया। सुभगा ने अत्यधिक प्रेम दर्शाया । फिर एक दिन रात को कहा "हम यहाँ से चले, तब आप मेरे पिता से मधुकण्ठ नामक एक नौकर को मांग ले । अत्यन्त चतुर है, सेवाभावी है, और मार्ग का ज्ञाता है । सुभगा ने सोचा अब नाटक करना ठीक नहीं । अब तो इस कांटे को ही निकाल देना है जिससे स्वेच्छा से मधुकण्ठ के
SR No.022703
Book TitleJayanand Kevali Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2002
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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