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________________ मामा भोगराजा भोगपुर का अधिपति था । एकबार सुरपुर के राजा सुरपाल ने भोगपुर जाकर भोगराजा को ललकारा काफी समय तक दोनों में युद्ध हुआ । क्षीण बल के कारण भोगराजा अपने नगरमें चला गया । फिर भागिनेय को बलवान जानकर उसकी मदद मांगी । नरसुंदर राजा जाने लगा । तब हरिवीर सेनाधिप ने कहा "चींटी पर कटक का क्या काम? मैं सुरपाल को जीतकर आपके मामा की रक्षा करूँगा।" तब हर्षित नरसुंदर ने दो हजार हाथी, दो हजार रथ, पांच लाख अश्व और पांच क्रोड़ पदाति सेना के साथ उसे भेजा । हरिवीर भोगपुर आया और महामानी सूरपाल को ललकारा । भोगपुर के राजा ने उसका स्वागत किया । युद्ध प्रारंभ हुआ । सूरपाल की सेना, हरिवीर की सेना के सामने हारने लगी । तब सूरपाल स्वयं युद्ध के लिए गया। भोगराजा को कहा "रे एकबार तो भागकर दुर्ग में चला गया था । अब कहाँ जायगा? तब भोगराज ने कहा "एकबार फाल चुक गया सिंह क्या दूसरी बार फाल देकर मृगों को नहीं मारता है ? फिर दोनों का युद्ध चला । परंतु भोगराजा उसके बाणों को सहन न कर सकने के कारण व्याकुल हो गया । तब हरिवीर सूरपाल के सामने आया । सूरपाल ने कहा 'मूर्ख ! परकार्य में क्यों मर रहा है?' हरिवीर ने कहा "महान योद्धाओं को स्व-पर का भेद नहीं रहता । मरण भाग्याधीन है, तेरी इच्छा से नहीं ।" उन दोनों में यद्ध चला । सूरपाल उसके सामने टीक न सका और सोचा कि इसके साथ युद्ध में मेरी मृत्यु निश्चित है। इसलिए 'जीवतो नर भद्रा पामे'कहावतानुसार मुझे पीछे जाना ही ठीक है। ऐसा निर्णयकर वह पीछे हटा । तब भोगराजा ने उसकी सेना को लूटा। अश्व, गज, शस्त्र, अलंकार, आदि लेकर हरिवीर के साथ अपने नगर में आया। भोगराजा ने स्वयं को जीवनदान, राज्यदान देनेवाला मानकर प्रीतिपूर्वक उसका सम्मान किया और अपने आदमियों से पूछा "मैं हरिवीर को एक
SR No.022703
Book TitleJayanand Kevali Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2002
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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