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________________ को सभी जगह से प्रधान पुरुषों को भेजकर बुलवायी। विजय एवं जयानंद राजा का समय सुखपूर्वक व्यतीत हो रहा था। एकबार दोनों पिता-पुत्र राजसभा में मणिमय सिंहासन पर बीराजमान थे, तब प्रतिहार ने आकर कहा “राजन् ! विजयपुर नगर से कुछ लोग विज्ञप्ति पत्र लेकर आये हैं?" राजा ने उन्हें शीघ्र भेजने को कहा । उन्हों ने आकर राजा को प्रणामकर विज्ञप्ति पत्र दिया । तब जयानंद राजा ने उस विज्ञप्ति पत्र को स्वयं पढ़ा "स्वस्ति श्रीलक्ष्मीपुर नगरे श्री विजयराजेन्द्र और श्रीजयानंद राजेन्द्र आदि परिवार को विनयपूर्वक प्रणामकर हाथ जोड़कर हम आप से यह विज्ञप्ति करते है कि आपके पूर्वजों से प्रति पालित विजयपुर पत्तन में सिंहसार शब्द मात्र से पृथ्वीपति है। वह सर्व व्यसन युक्त कुमार्ग गामी और कुमतिवान् है मायावी, कुकर्मी, धर्महीन, इंद्रियों से पराजित, सर्व अन्याय का घर, क्रूर प्रकृतिवाला है। उसने आपके पूर्वजों के जो राजमान्य थे, न्याय प्रवीण थे उनमें से किसीको माया से बांधकर कैद में डाल दिये, किसी का सर्वस्व ग्रहण कर लिया। इस प्रकार आप के हितेच्छुयों को अत्यंत दु:खी किये हुए हैं। लोभान्ध बनकर इसने अनेक प्रकार के कर लगाकर प्रजा को दु:खी कर दी है। इसके पास सच्ची सलाह देनेवाला कोई नहीं है। श्री जयराजा आपको राज्य देना चाहता था। परंतु आप न आकर आपने दुष्ट बुद्धिवाले इस सिंहसार को भेजा। अब प्रजा को पीड़ित करने का पाप आप पर है। हमारी आप से नम्र-विनति है कि आप पधारकर आपके पूर्वजों द्वारा पोषित प्रजा का हित करे । आपके दर्शन के हम इच्छुक हैं । आपका यह मूल राज्य है। आप इस पत्र को पढ़कर नहीं पधारे, तो हमें दूसरे राज्य की शरण लेनी पड़ेगी । यह राज्य शून्य हो जायगा । लि "पीड़ित प्रजाजन" १८४ -
SR No.022703
Book TitleJayanand Kevali Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2002
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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