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________________ दिन चक्रायुध के दूत ने आकर कहा 'वज्रसुंदरी को स्वयंवरा के रूप में भेजो।" पवनवेग ने कहा "मैंने कन्या मेरे पत्र को छुडवानेवाले जयानंद राजा को दे दी है।" दूत ने कहा "विवाहिता को भी कन्यावेश में भेज, नहीं तो तेरा और तेरे जामाता का अहित होगा।" पवनवेग ने कहा "प्राण जाने पर भी ऐसा कार्य नहीं करूँगा।'' फिर पंडितो को और प्रधानों को समझाने के लिए चक्रायुध के पास भेजा। उन्हों ने जाकर, राजा को समझाया। चक्रायुध ने कहा "मैं मध्यवयवाला हूँ। मुझे कन्या की इच्छा नहीं है। पर आज्ञा भंग को सहन नहीं कर सकता अतः वज्रसुंदरी 'चक्रायुध की दासी' ऐसे नामांकित कंकण हाथ में सदैव धारण करे। जामाता 'चक्रायुध का दास' ऐसे अंकित मुकुट धारण करे और वज्रसुंदरी मेरी पुत्री चक्रसुंदरी को नाट्य सिखाने हेतु यहाँ आये । इतना नहीं करेगा, तो राज्य और जीवितव्य की आशा मत रखना। पंडितों ने आकर समाचार कहे, तब जयानंद ने कहा “मैं वज्रसुंदरी का रूप लेकर पांचसो योद्धाओं को स्त्रियाँ बनाकर ले जाऊँगा । अगर आवश्यक होगा तो तुम्हें बुलाऊँगा । यह विचार (गुप्त रूप से) किया।" थोड़ी देर में चक्रायुध का दूत पुनः आया । उसके साथ वज्रसुंदरी को भेज दी । उन्होंने शस्त्रादि पर्वतों में छुपा दिये और चक्रायुध की राज सभा में मायावी वज्रसुंदरी आयी । राजा ने उसके रूपानुकूल नाट्यकला भी देखी । खुश होकर ग्रास-दासी वस्त्रालंकार आदि दिये । उसे चक्रसुंदरी के पास भेजी । मायावी कन्या ने योगिनी निबद्ध जयानंद चरित्र गीत-गान के माध्यम में सुनाया । उससे वह जयानन्द पर प्रीति धारक हो गयी । उसके पूछने पर जयानंद के गुणों का, पराक्रम का व रूप का वर्णन
SR No.022703
Book TitleJayanand Kevali Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2002
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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