SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ और कहा “जो इस पट को स्थिर दृष्टि से निरीक्षण करे उसको मेरे पास भेजें।" सेवक उसकी आज्ञा अनुसार भोजनादि करवाते थे । आने जानेवाले मनोहर चित्रशाला, दानशाला, भोजनशाला की प्रशंसा करने लगे । एक बार दूर से आये हुए धूल सन्ने वस्त्रवाले पथिकों ने उस पट को देखकर कहा "हमारा नगर किसी विज्ञान वेत्ता ने पूर्ण रूप से चित्रित किया है।" पट के रक्षकों ने पूछा “आप कहाँ से आये हैं ?" उन्होंने कहा “पद्मपुर से ।' उनको वे नौकर जयानंदकुमार के पास ले गये । कुमार ने उनको संतुष्टकर पूछा, तो उन्होंने कहा "हमारे नगर से पद्मपुर नगर सौ योजन है, उसके पास में पद्मकुट नगर है, जो इस चित्र में चित्रित है। वहाँ पद्मरथ राजा राज्य करता है । सभी उज्ज्वल गुण होते हुए भी कर्म के वश से उस पर नास्तिकता का कलंक है।" इत्यादि बातें सुनकर उनको उचित पुरस्कार देकर भेज दिया। एकबार उस नगर में जाने का विचारकर रतिसुंदरी से कहा “मैं तीर्थयात्रा कर लौटूं, तब तक तुम माता के पास कलाभ्यास करते हुए समय पूर्ण करना, और अष्ट नगर से उत्पन्न आय से दानादि धर्म कार्य करना ।" उसे सुनकर रतिसुंदरी ने विषाद पूर्ण हृदय से पति आज्ञा को मान्य की । कुमार रात को पल्यंक पर बैठकर पद्मकूट पर्वत पर आया । वहाँ पल्यंक को छुपाकर, भिल्ल का रूप बनाकर, काष्ठका भारा उठाकर, पद्मपुर में प्रवेशकर, चतुष्पथ पर काष्ठ बेचने बैठा । तभी कुछ राजपुरुष वहाँ आये । उन्होंने उस कुरूप को कहा "अय, तुझे राजा बुला रहे है, राज सभा में आ। भिल्ल ने कहा "कहाँ राजा? कहाँ मैं? मेरा राज सभा में क्या काम है? आप को काष्ट से काम हो तो ले लो और मुझे जाने दो।" उन्होंने कहा-"भद्र ! डर मत। तेरा ही प्रयोजन है ? तू आ । राजा तुझ पर प्रसन्न होगा। वह उनके साथ गया। उन्होंने उसे वहाँ ले जाकर राजा के सामने खड़ा किया । वह भी काष्ठ का भारा राजा के सामने भेंट रूप में रखकर खड़ा रहा । राजा ने पूछा" "तू
SR No.022703
Book TitleJayanand Kevali Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2002
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy