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________________ [70] कुवलयमाला-कथा शत्रु राजाओं के कान बहिरे हो जाते थे और उसके सैन्य द्वारा उड़ाई हुई अविच्छिन्न धूल से उनकी आँखें अन्धी हो जाती थीं। उसके विक्रम गुण की प्रशंसा सहस्रजिह्व शेषनाग से भी नहीं हो सकती। उस राजा के एक पुत्र था। उसका नाम था तोसल। वह पण्डितों में मुख्य था। खूबसूरती में इन्द्र के पुत्र जयन्त के समान था, किन्तु अकुलीन' न था। शेर के समान पराक्रमी था, किन्तु उसके नखरूप हथियार न थे। सूर्य के समान प्रतापी था, पर कठोर न था। अथक वह चन्द्रमा के समान सर्वत्र आह्लाद सुख देने वाला था, किन्तु कलङ्की न था। इस प्रकार विविध गुणों से विभूषित राजकुमार ने किसी बड़े नगरसेठ की हवेली के झरोके में निकला हुआ, कमल के पत्ते की तरह लम्बे नेत्र वाला किसी बाला का मुख-कमल देखा। वह ऐसा जान पड़ता मानो पूर्णिमा का चाँद मेघ मण्डल में से प्रगट हुआ हो। उस बाला ने साक्षात् कामदेव के समान राजपुत्र को देखा और उसका मन अत्यन्त अनुराग सागर में निमग्न हो गया। उसे देखकर राजकुमार के चित्त को, परस्त्री के देखने से कुपित होकर कामदेव ने अपने पाँचों ही बाणों से वेध कर सौ छेदों वाला कर दिया- राजकुमार के मन में कामदेव अत्यन्त पीड़ा पहुँचाने लगा। इसके अनन्तर निर्दय कामदेव के प्रहार से मानो अत्यन्त पीड़ित हो, कुमार ने दाहिने हाथ से अपने वक्षःस्थल (छाती) को स्पर्श किया, और बायाँ हाथ नाभि पर रखकर तर्जना अङ्गली ऊँची की। यह देखकर उस पराधीन बाला ने दाहिने हाथ से तलवार का सा निशान किया। उसकी ऐसी चेष्टा देख राजकुमार अपने महल की ओर जाता जाता विचार करने लगा -'अहो! इस बाला के निर्मल लावण्यवाले मुख ने चन्द्रमा को भी लज्जित कर दिया है। उसने तलवार के चिह्न के बहाने मेरे पेट में छुरी मारी है। उसके मुख चन्द्र के उदय होने से लावण्य सागर उल्लसित हो उठा है। उसकी वाणी अमृत के समान है। उसकी दृष्टि मत्स्य की दृष्टि के समान है। उसके ओष्ठ मूंगा की नाई (लाल) हैं। उसके दाँत मोती सरीखे हैं। उसके दोनों स्तन कछुए की तरह (कठोर) हैं और उसके हाथ बेंत की बेल सदृश हैं। शृङ्गार का सर्वस्व- स्वरूप यह बाला कामदेव की राजधानी और खिले हुए यौवन के कारण लावण्य की बावड़ी है। अहा, इसका रूप सब रूपों को लजाता है। उसके सौभाग्य की रचना कुछ अद्भुत ही है। अहा, उसमें कैसी चतुराई है? अहो, उसकी अनुपम लावण्य लक्ष्मी' इत्यादि विचार करता-करता द्वितीय प्रस्ताव मोहदत्त की कथा
SR No.022701
Book TitleKuvalaymala Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Narayan Shastri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2013
Total Pages234
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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