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________________ क्रोध पर चण्डसोम की कथा ___ पृथ्वीरूपी स्त्री का मानो कुण्डल हो, इस प्रकार गर्म किये हुए सोने के परकोटा तथा गहरे जल वाली खाई से घिरी हुई काञ्ची नामकी नगरी है। उसके आग्नेय कोण में, तीन कोस की दूरी पर 'रगडा' नामक एक संनिवेश है। उसमें सुशर्मदेव नामक ब्राह्मण रहता है। उसकी सुशर्मा नाम की स्त्री है। उसके बड़े लड़के का नाम रुद्रसोम है। उस रुद्रसोम का सामदेव नाम का छोटा भाई तथा श्री सोमा नाम की बहिन है। रुद्रसोम लड़कपन से ही प्रचण्ड, चञ्चल, असहनशील, घमण्ड से कन्धे ऊँचे रखने वाला, स्तब्ध तथा कठोरभाषी था। वह अपनी गली में तमाम लड़कों से बिना कुसूर ही मारपीट किया करता था। बालकों ने ही ऐसा स्वभाव देखकर उसका ‘चण्डसोम' यह यथार्थ नाम रक्खा है। हे राजन् ! कुछ दिन बीतने पर चण्डसोम के पिता ने ब्राह्मणकुल की नन्दिनी नाम की एक कन्या के साथ इसका पाणिग्रहण कराया। इसके बाद उसके माता-पिता कुटुम्ब का भार, उसी पर लाद कर गङ्गाजी की तीर्थयात्रा करने चले गये। धीरे-धीरे चण्डसोम यौवन लक्ष्मी से अलंकृत हुआ। नन्दिनी, यद्यपि अखण्ड शीलव्रत पालन करती थी, तो भी यौवन के कारण, अत्यन्त मनोहर अङ्गों से रमणीय होने से चण्डसोम उसका विश्वास न करता था। हे राजन्! उस नन्दिनी पर थोड़ा राग रखते-रखते कुछ समय व्यतीत हुआ। एक समय की बात है। शरद् ऋतु की लक्ष्मी का अवतार हुआ। चारों दिशाएँ निर्मल हुईं। कुमुदिनी खिल उठीं। काश के वृक्ष विकसित हो गये। अतिशय पवित्रतापात्र पुरुषों का दूसरे लोग आदर करने लगे। उस ऋतु में जल भी स्वच्छ हो गया। कमल की गन्ध से ललचाए हुए भौंरों के समुदाय की गुनगुनाहट से सरोवर क्रोध पर चण्डसोम की कथा द्वितीय प्रस्ताव
SR No.022701
Book TitleKuvalaymala Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Narayan Shastri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2013
Total Pages234
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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