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________________ कुवलयमाला-कथा [217] I पूर्वजन्म के संकेतित देव से पक्षि-प्रयोग से प्रतिबोधित कर दिया गया। तब भगवान् सर्वज्ञ श्रीमहावीरदेव मगधदेश मण्डल में श्रीगृह राजगृह चले गये । वहाँ सर्वदेवों द्वारा रचित समवसरण में श्री श्रेणिक पृथ्वीपति ने सपरिवार परमभक्ति से भगवान् को नमन कर यथास्थान आसीन होकर सादर पूछा "भगवन् ! श्रुतज्ञान क्या है? " तब भगवान् ने साङ्गोपाङ्ग विशिष्ट श्रुतज्ञान बताया 44 44 औ, अ, इ, क, क, च, ट, त, प और श इनको शोभन वर्ण जानना चाहिए ! आ, ई, ख, छ, ढ, थ, फ, र और ष ये अशोभन वर्ण कहे गये हैं ।। १११ ।। ए, उ, ग, ज, ड, द, ब, ल और स ये सब कार्यों में सुभग होते हैं । ऐ, थ झ, ढ, ध, भ, व, ह और न ये किन्हीं कार्यों में सुन्दर हैं ।। ११२ ।। ओ, औ, ङ, ञ, ण, न, म, अं, अः ये कार्यों में मिश्र स्वरूप होते हैं। अब ऐसे वर्णों का सब फल भी बताऊँगा ।। ११३ ।। शोभन - अशोभन, सुख-दुःख, सन्धि - विग्रह, आता है, नहीं आता है, लाभ-अलाभ, न जय तथा जय ।। ११४।। " कार्य होता है नहीं होता है, क्षेम नहीं है क्षेम है नहीं है, सम्पत्ति, विपत्ति, जीवन एवं मृत्यु ।। ११५ ।। प्रथमवचन में भी प्रथम शुभवर्ण बहुत है, कार्यसिद्धि जानो, कार्य सिद्ध होता है, अशुभ नहीं ।। ११६ ।। अथवा पृच्छावचन प्रथम लेकर उसका निरीक्षण करे, विधिवचन में शुभ होता है और प्रतिषेध वाक्य में शुभ नहीं होता।। ११७।। अथवा फल कुसुम, अक्षतपत्र, रूपक अन्य पुरुषरूप अष्टभागलब्ध को लेकर उससे फल जानना ।। ११८ ॥ ध्वज में तो सब सफल है, धूम उद्वेगकारी होता है, सिंह में राज्य और श्रीविजय होती है और मण्डल में स्वल्पलाभ ।। ११९ ।। वृष में तुष्टि पुष्टि, खर में गमन कलि, गज में पूजा होती ही है, काक में नित्य परिभ्रमण ।। १२० ।। " इस बीच में श्रेणिकभूपति के अष्टवर्षीय पुत्र महारथकुमार ने स्वामी को नमन करके निवेदन किया -" भगवन्! आज मैंने स्वप्न में सुवर्ण मिश्रित कालायस देखा है । ततः अग्नि की ज्वाला से तपा हुआ वह गिरिसार क्षीण हो गया, वह केवल सुवर्ण ही रहा, उसका विशेष फल क्या है?" भगवान् ने चतुर्थ
SR No.022701
Book TitleKuvalaymala Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Narayan Shastri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2013
Total Pages234
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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