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________________ [210] कुवलयमाला-कथा विलाप को सुन कर विद्यासिद्ध ने कहा -"उससे तुझे क्या कार्य है? यदि उस दायित को प्राप्त कर लूँ तो उसे ही खा जाऊँ" यह सुनकर कुमार ने सोचा -'अहो! दुराचारी आ ही गया है पर मेरी प्राणप्रिया को लेकर, तो यह सुन्दर हुआ कि यह वही लोप करने वाला चोर है' यह विचारते हुए कुमार ने बिल के द्वार में विद्यासिद्ध के शिर को प्रविष्ट होता हुआ देखा। तब कुमार ने विचार किया -'इसका शिर काट दूं, अथवा नहीं, क्या सत्पुरुष छिद्रान्वेषी होते हैं, यह सर्वथा उचित नहीं है, तो इसकी शक्ति देखता हूँ', यह सोचते हुए कुमार के सामने विद्यासिद्ध छिद्र से प्रविष्ट हो गया। तब कुमार ने कहा -"अरे! यदि आप विद्यासिद्ध हो तो नीति मार्ग पर चलो, जो अन्याय करते हो वह उचित नहीं है। यदि सचमुच चोर हो तो पकड़ने योग्य हो, तुम युद्ध करने को सज्जित हो जाओ।" उस राजपुत्र को देखकर 'अरे यह वैरिगुप्त कैसे आ पहुँचा? तो काम बिगड़ गया, तो इस बालक से क्या?' यह सोचते हुए विद्यासिद्ध ने कहा "यमराज के मुख के सामने इस बिल में किसके द्वारा फेंक दिये हो? रूप सौभाग्यशाली तुम क्यों मृत्यु चाहते हो? तब 'कृपाण कृपाण' यह कहते हुए देवायतन में राजपुत्र से।। ८९।। सम्बन्धित खड्ग और खेटक को लेकर विचार किया कि 'अहो! यह मेरा न खड्गरत्न है और न खेटक भी', ऐसा सोचता हुआ कुमार के पास आकर बोला - "मेरे अन्तःपुर में मातृ शासित किससे प्रेषित किया गया है? ज्ञात हुआ कि नहीं तुम्हारे ऊपर प्रेतपति कुपित है।। ९०।। अब तुम्हारा इस बिल से निर्गम नहीं होगा। सूपकारों को अधीन हुए तुम खरगोश के समान नष्ट हो जाओगे।। ९१ ।। "कुमार ने कहा - "अरे क्यों रे स्वैरचारी! तु मेरी प्रिया का हरण करके उन्मत्त हो रहा है? तू यम के निकट पहुँच ही गया है"।। ९२ ।। यह कहते हुए कुमार के उसकी ओर खड्ग का प्रहार दिया।। ९३।। कलाकौशलशाली उसने भी उस प्रहार का वञ्चित कर कुमार ने प्रति प्रहार मुक्त किया। कुमार ने भी उसको वञ्चित कर दिया। तब उनमें जंगली भैंसों की भाँति महायुद्ध प्रारम्भ हुआ, पर इसमें किसी को भी जय नहीं हुई, तथापि 'यह विद्यासिद्ध कैतवी है' ऐसा सोचकर चम्पक माला ने कहा - "कुमार! इस खड्गरत्न को याद करो।" 'इसने सुन्दर कहा' यह विचार का कुमार ने कहा - अरे यदि तू सिद्धों में सिद्ध है और चक्रियों का चतुर्थ प्रस्ताव
SR No.022701
Book TitleKuvalaymala Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Narayan Shastri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2013
Total Pages234
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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