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________________ [148] कुवलयमाला-कथा जाती हैं। कुमार! यह विद्याधर इस जंगल में अपनी स्त्री के साथ इच्छानुसार भ्रमण करता रहता है। कुमार- तुमने कैसा जाना कि यह विद्याधर है? एणिका-'मैं भी नहीं जानती थी, पर एक बार राजकीर के मुख से उनका हाल सुना था। मैंने एक बार पाप के लिए औषध के समान पौषध को स्वीकार किया था। उस दिन राजकीर आदीश्वर भगवान् की पूजा के लिए फल-फूल पत्ते लाने के लिए पास के वन में गया था। वहाँ से दोपहर होने के बाद आया। मैंने उससे पूछा-"आज तू इतनी देर करके क्यों आया?" वह बोला "आज तू ठग गई है, क्योंकि तूने आँखों को अचरज करने वाली कोई बात नहीं देखी। देखने योग्य वस्तु को देखना ही आँखों का फल है।" यह सुनकर मैंने कहा"राजकीर! वह आश्चर्य की बात क्या है? कहो।" उसने मुझसे कहा-"आज मैं वन में गया तो वहाँ शङ्ख, तुरही, भेरी और मृदङ्ग की तेज आवाज सुनी। यह सुनकर मैंने यह जानने के लिए कान लगाया कि किस ओर से यह आवाज आ रही है? फिर उस ध्वनि का अनुसरण करता हुआ मैं उसी तरफ चला तो भगवान् ऋषभदेव की प्रतिमा के पास दिव्य पुरुष और स्त्रियों को प्रणाम करते तथा आहार्य वाचिक आङ्गिक और सात्त्विक, ये चार प्रकार के अभिनय करते देखा। मैंने सोचा-'ये दिव्य जन देव तो नहीं जान पड़ते, क्योंकि एक बार केवली भगवान् के केवलज्ञान की महिमा (पूजा) करने के लिए आये हुए देवों को देखा था तो उनके पैर धरती को नहीं छूते थे और नेत्र निमेष सहित थे। इससे जान पड़ता है कि ये देवता नहीं हैं। हाँ अत्यन्त लक्ष्मीवान् होने से कोई साधारण मनुष्य भी नहीं मालूम होते। जान पड़ता है ये आकाश में चलने वाले विद्याधर हैं। मैं पूछता हूँ कि इन्होंने यह क्या प्रारम्भ किया है?' ऐसा विचार करके मैं क्षण भर एक आम के वृक्ष के नीचे बैठा। इतने में वे विद्याधर और विद्याधरियाँ भी अपनी-अपनी जगह बैठ गये। इसके पश्चात् एक विद्याधर तथा विद्याधरी ने प्रसन्न-चित्त होकर आदीश्वर भगवान् का, स्नान करा कर पाँच वर्गों के मनोहर जल तथा स्थल के कमलों से पूजन किया। फिर दोनों ने स्तुति करके नागराज धरणेन्द्र की आराधना के लिए एक कायोत्सर्ग किया, दूसरा कायोत्सर्ग धरणेन्द्र की अग्रमहिषी की आराधना के लिए किया तृतीय प्रस्ताव
SR No.022701
Book TitleKuvalaymala Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Narayan Shastri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2013
Total Pages234
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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