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________________ कुवलयमाला-कथा [141] वही तोता हूँ। इसके बाद पल्लीपति ने मुझे एक बार लक्ष्मी के स्थान- रूप भृगुकच्छ (भरोंच) नगर के भृगु राजा को भेंट कर दिया। उसने प्रसन्न होकर अपनी पुत्री मदनमञ्जरी को क्रीड़ा करने के लिए मुझको दिया। उसने थोड़ी ही दिनों में मुझे स्थावर और जङ्गम विष की परीक्षा तथा चिकित्सा, हाथीघोड़ा, कुत्ता, पुरुष और स्त्री के लक्षण आदि बताने वाले समस्त शास्त्रों का पारङ्गत बना दिया। एक बार वहाँ भयानक ग्रीष्म ऋतु में अनित्य आदि भावना भाते हुए किसी मुनि को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। उस समय केवलज्ञान की स्तुति करने के लिए आते हुए देवों को देखकर नगर निवासियों ने भृगु राजा से प्रार्थना की-"महाराज! आपके पिता को चार घातिया कर्मों का क्षय होने से केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है।" यह सुनकर भृगु राजा परिवार को साथ लेकर अपने केवली पिता को वन्दना करने गया। इतने में काले और पीले वस्त्र पहने हुए देदीप्यमान मणि तथा कञ्चन जैसी कान्ति वाले अलङ्कारों से अलङ्कृत दो विद्याधरों ने वहाँ आकर, केवली को वन्दना करके पूछा-"भगवन्! वह स्त्री कौन है?" यह प्रश्न सुनकर भृगु राजा और दूसरे लोगों ने उनसे पूछा“विद्याधरों! तुम किस स्त्री के विषय में प्रश्न कर रहे हो?" वे बोले-"एक बार हम वैताढ्य पर्वत से निकलकर सम्मेद पर्वत की शिखरों पर विराजमान तीर्थङ्करों को वन्दना करके वहाँ से श्रीशत्रुञ्जय महातीर्थ की तरफ जा रहे थे। वहाँ विन्ध्याचल पर्वत के जंगल में नर्मदा के दक्षिण किनारे पर मृगों की टोली के साथ चलती हुई एक बालिका को देखकर हमने सोचा-'मृगों की टोली के साथ मानुषी का रहना बड़े आश्चर्य की बात है।' इस कौतूहल से हम नीचे उतरे और उससे पूछा-"बालिका! तू इस भयङ्कर और निर्जन वन में अकेली क्यों है? तू यहाँ कहाँ से आई है?" यह सुनकर वह कुछ भी न बोली उलटी हम से दूर दूर जाने लगी। हम देखते ही रहे और वह सुन्दर नेत्र वाली बालिका मृगों की टोली के साथ चली गई। यह आश्चर्य देखकर 'कोई अतिशय ज्ञानी मुनि मिलेंगे तो उनसे इस विषय में पूछेगे' ऐसा विचार कर हम वहाँ से आगे चले। इतने में यहाँ केवली भगवान् के दर्शन हुए। इसीलिए हमने उनसे प्रश्न किया है कि भगवन्! वह स्त्री कौन है? इसके बाद केवलज्ञान से शोभित मुनीश्वर स्वयं बोले-"इस जम्बूद्वीप में सब नगरियों से श्रेष्ठ, दान सहित कवियों से सुशोभित तथा लक्ष्मी के द्वारा तृतीय प्रस्ताव
SR No.022701
Book TitleKuvalaymala Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Narayan Shastri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2013
Total Pages234
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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