SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [134] कुवलयमाला-कथा समय मैं बहुत ज्यादा थका हुआ हूँ, इसलिए एकदम पानी पीना या स्नान करना उचित नहीं है।' ऐसा विचार कर कुमार ने किसी वृक्ष के नीचे बैठ कर थोड़ी देर विश्राम किया। फिर सरोवर में एक लतामण्डप में बनी हुई एक यक्ष की मूर्ति उसे दिखाई दी और उस यक्ष के मस्तक पर समस्त तीन लोक के बन्धु श्री अरिहंत भगवान् की मोतियों की मूर्ति नजर आई। यह देखकर हर्ष के आवेश से उसके नेत्र खिल गये। वह इस प्रकार स्तुति करने लगा- "हे तीन लोक के नाथ! आपकी जय हो। हे माया ममता रहित प्रभो! आपकी जय हो। हे दया के सागर आपकी जय हो। हे कल्याण रूपी लक्ष्मी के भण्डार! आपकी जय हो।" इस प्रकार स्तुति करके कुमार ने सरोवर के जल से प्रतिमा का प्रक्षालन किया और सूर्य की किरणों से खिले हुए कमलों से पूजा की। कुमार ने इस प्रकार फिर स्तुति की-"तीन लोक के अलंकारों में मणि के समान प्रभो! आप संसार-सागर की पापरूपी लहरी में बिलकुल डूबते हुए प्राणियों के रक्षक हैं, आप नायक हैं और आप ही गुरु हैं। प्रभो! और तो क्या कहूँ? मुझ दीन के आप ही पिता हैं, आप ही जीवन हैं और आप ही गति हैं।" कुमार इस प्रकार स्तुति कर रहा था कि इतने में सरोवर के भीतर से, जल को क्षुब्ध करती हुई एक दिव्य रूप धारिणी स्त्री बाहर निकली। उसे देखकर कुमार ने सोचा 'यह समुद्र की पुत्री लक्ष्मी है? कोई श्रेष्ठ विद्याधरी है? कोई सिद्धाङ्गना है? या विद्याधरी है।' कुमार यह विचार ही रहा था कि उस स्त्री के पीछे एक दासी निकली। दासी के एक हाथ रूपी कमल में जल से भरा हुआ एक सुवर्ण का कलश था और दूसरे हाथ में दिव्य पुष्प आदि पूजा की सामग्री से भरी हुई एक पटलिका थी। इन दोनों को देखकर कुमार ने विचारा कि मैं इसी जगह रहूँगा तो इनके मन में क्षोभ होगा। इसलिए थोड़ी देर इस यक्ष के पीछे खड़ा रहूँ और देखू कि 'ये स्त्रियाँ यहाँ क्यों आई हैं? यहाँ आकर क्या करती हैं?' कुमार यह सोचकर यक्ष की मूर्ति के पीछे जाकर खड़ा हो गया। वह कोमलाङ्गी स्त्री आई और भगवान् की प्रतिमा को कमलों से पूजी हुई देखकर बोली-"दासी! मालूम होती है आज किसी ने आदीश्वर भगवान् की प्रतिमा की पूजा की है। परन्तु यह पूजा किसी देव ने की है या मनुष्य ने? यह ठीक नहीं मालूम होता।" दासी-"इस वन में रहने वाले भील लोगों ने की होगी।" स्त्री- “नहीं नहीं, तू इन पैरों को तो देख। रेत में उछरे हुए तृतीय प्रस्ताव
SR No.022701
Book TitleKuvalaymala Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Narayan Shastri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2013
Total Pages234
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy