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________________ [104] कुवलयमाला-कथा वह उसी दम विवाह के वस्त्रों- सहित उपाश्रय दौड़ा गया। ग्लान मुनि ने दूसरी कोई दवाई न ली थी, इस कारण वे रोग से बहुत ही पीड़ित हो रहे थे यहाँ तब कि उस पीड़ा को सहने में असमर्थ हो गये थे। मन्त्री ने उन्हें इस हालत में देखा तो उसकी आँखों में आँसू भर आये। वह अपने आप अपनी निन्दा करता हुआ मुनि के पैरों में गिर पड़ा। विवाह के योग्य आभूषणों से भूषित वह मन्त्री उन मुनिराज से मन, वचन, काय से क्षमा माँगने लगा और संसार से छुडाने वाली शुभ भावना भाने (करने) लगा। इस तरह जब शुभभाव बहुत बढ गये तो उसी समय घातिया कर्मों का क्षय हो गया और केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। अत्यन्त उज्ज्वल केवलज्ञान से वह तीन लोक में रहे हुए अनन्त प्राणियों को देखने लगा। तत्काल जैन शासन की अधिष्ठात्री देवी ने विनीत को मुनि का भेष पहना दिया।" श्रीधर्मनन्दन आचार्य कहते हैं- शिष्यों! विनीत मन्त्री, विवाह के उसी शुभ मुहूर्त पर, नितम्ब, जाँघ और स्तनों के भारी भार वाली होने के कारण संसार-समुद्र में डुबाने वाली सुन्दरी स्त्री को त्याग कर तपस्वियों में श्रेष्ठ होकर चारित्र रूपी लक्ष्मी के साथ विवाहित हुआ। साधुओं! विनय प्रधान विनीत मन्त्री मुनि की इस कथा को भलीभाँति हृदय में धारण करना और विनय गुण को प्राप्त करने का तुम भी खूब प्रयत्न करना, जिससे कि तुम्हें भी विनय से मोक्ष के सुख की लक्ष्मी प्राप्त होवे। ॥ इति विनय-दृष्टान्तः समाप्त।। पश्चात् चण्डसोम आदि पाँचों साधुओं ने प्रार्थना की "हे पूज्य! आप जो कहते हैं, वह सब हम स्वीकार करते है। लेकिन हमने जो बुरे आचरण किये हैं, वे हमें काँटे की तरह चुभ रहे हैं।" श्रीधर्मनन्दन गुरु- "साधुओं! तुम मन में कभी ऐसा विचार ही न करो कि हमने पहले पाप किये हैं, क्योंकि जिसने अपने पापों का पश्चात्ताप नहीं किया, उसे ही पापी समझना चाहिए।" ___राजा (पुरन्दरदत्त) ने गुरु महाराज के मुख से सब उपदेश सुनकर उन्हें मन में नमस्कार किया। वह उद्यान से बाहर निकलकर,बिजली की भाँति छलाँग मार परकोटा को लाँघकर अपने निवास स्थान में आया। उसके चित्त में संसार से खेद हो रहा था। वह अपनी शय्या पर चित्त (सीधा) सो गया। तृतीय प्रस्ताव विनय पर दृष्टान्त
SR No.022701
Book TitleKuvalaymala Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Narayan Shastri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2013
Total Pages234
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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