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________________ [102] कुवलयमाला-कथा पदाथों में प्रेम (8) अरति ( 9 ) भय ( 10 ) घृणा ( 11 ) शोक (12) काम- -विषयों की अभिलाषा (13) मिथ्यात्व ( 14 ) अज्ञान ( 15 ) निद्रा ( 16 ) अविरति - प्रत्याख्यान न करना (17) राग - भोगे हुए सुख का स्मरण करके, सुख या उसके साधन-अच्छे लगने वाले विषयों में मूर्च्छा करना ( 18 ) द्वेष - भोगे हुए दुःख का स्मरण करके दुःखों पर या दुःख के कारणों पर क्रोध करना । ये अठारह दोष तीर्थङ्करों में नहीं होते । भूत, भविष्य और वर्तमान, ये तीन काल तथा धर्मास्तिकाय, अधर्मस्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, जीवास्तिकाय और आकाशास्तिकाय, ये छह द्रव्य हैं इत्यादि । जैन शासन के सर्व को समझना विवेकी पुरुष का कर्त्तव्य है । " इस प्रकार गुरु के मुख से धर्म के रहस्य वाली देशना सुन कर और गुणों के समूह से गुरु, गुरु महाराज को वन्दना करके मन्त्री विनीत अपने घर लौट आया। लेकिन, तब से घर का काम काज छोड़ करके भी विनीत पियासे की तरह धमोपदेशरूपी अमृत को पीने के लिए, प्रतिदिन गुरु महाराज के पास जाने लगा। एक दिन गुरु महाराज विहार करने के लिए तैयार हुए। यह जान कर मन्त्री विनीत ने कहा- "महाराज ! मेरे पिता को यहीं रहने दीजिये, जिससे कि उनके दर्शन करके मैं प्रसन्न रह सकूँ ।" के यह सुनकर, ज्ञान के द्वारा सब सच्चा हाल जान कर गुरु जी बोलेमन्त्री ! ये तुम्हारे पिता नहीं हैं, हाँ, तुम्हारा पालन-पोषण करने के कारण पिता तुल्य हैं। । गुरु जी की बात सुनने से मानो विनीत के मस्तक में शूल उत्पन्न हो गया हो, इस प्रकार खेदित होकर वह बोला - " हे निष्कपट गुरुजी ! तो मेरा असली पिता कौन है?" 44 असली बात को जानने वाले सूरि बोले - " मन्त्री ! तुम्हारे घर जो बूढ़ा चाकर है, वही तुम्हारा पिता है और बूढ़ी नौकरानी तुम्हारी माता है । वह जवान नौकर तुम्हारा भाई है । यह तुम्हारा कुटुम्ब है ।" विनीत ने उक्त बात सुनकर और यह निश्चय करके कि मुनि कभी असत्य नहीं बोलते, गुरु को प्रणाम किया और आँखों में आँसू भरकर अपने घर आया । आते ही मैले-कुचैले कपड़ों वाली और धूएँ से काली आँखों वाली बूढ़ी नौकरानी के चरणों में सब के सामने गिर पड़ा और बोला- "माता ! तुम्हारी ऐसी दुःखी अवस्था में भी मैं तुम्हें पहचान न सका अभी-अभी गुरुमहाराज ने सिद्धि के समान तुम्हारी पहचान विनय पर दृष्टान्त तृतीय प्रस्ताव
SR No.022701
Book TitleKuvalaymala Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Narayan Shastri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2013
Total Pages234
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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