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________________ वाले सुखी हैं? ज्यों-ज्यों इन प्रवृत्तियों को रोकने के लिए उपाय/प्रयास किये जाते हैं- त्यों-त्यों वे रक्तबीज के समान बढ़ते ही जाते हैं। इस प्रकार समस्त विश्व की सुख-शान्ति की स्थिति उत्पन्न होती न देखकर सहृदय व्यक्ति शास्त्रोक्त बातों से, दृष्टान्तों से जनमानस को प्रदूषण से दूर रखने के लिए कथा, उपन्यास, नाटक, काव्य आदि के माध्यम से स्वतः स्फूर्त प्रेरणा से ही उद्यत हुए बिना नहीं रहते। उनकी लेखनी में वह अहिंसक शक्ति होती है जो बड़े-बड़े आयुधों में नहीं होती। यह निर्विवाद सत्य है कि आयुधों से वह स्थायी विजय नहीं मिलती है जो मानसिक प्रदूषण को दूर करने से मिलती है। इसी बात को ध्यान में रखकर सभी देश विदेश के महामना विद्वान् ऋषि-मुनियों और साधु-सन्तों ने विश्वकल्याण की कामना से समय समय पर मनुष्य के मानसिक प्रदूषण को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए अपनी त्रिकालजयी जो कृतियाँ प्रस्तुत की, वे अवश्य ही जीवन में सदैव मानवमात्र द्वारा अनुसरणीय हैं। उन्हीं महामना विद्वद् रत्नों में दाक्षिण्य चिह्नाङ्कित उद्योतन सूरिजी भी एक हैं। इन्होंने अपने समय की सर्वसामान्य द्वारा दैनिक व्यवहार में प्रयुक्त की जाने वाली "प्राकृत" भाषा में "कुवलयमाला-कथा" प्रस्तुत की जो जनमानस को प्रदूषण से बचन-बचाने का उपाय बताती है। प्रमुख रूप से इस कृति में जैन-शास्त्र में निर्दिष्ट स्थायी सुख प्राप्ति के उपाय बताये गये हैं। उनका अनुसरण करने से व्यक्ति को जहाँ सुखशान्तिमय जीवनयापन की प्राप्ति होती है, वहीं किसी के भी पूर्व जन्म और जीवन को जानने की भी अपूर्व सिद्धि मिल जाती है। ___आगे चलकर जब "प्राकृत" भाषा जनसामान्य की भाषा नहीं रही और इससे प्राकृतभाषा में प्रस्तुत इस "कुवलयमाला-कथा" के उपयोग न करने से जनसामान्य वञ्चित रहने लगा तो तत्कालीन व्यावहारिक भाषा "संस्कृत" में इसका रूपान्तरण श्रीयुत परमानन्द सूरि जी के शिष्य श्रीरत्नप्रभ सूरि जी ने किया। गद्य-पद्य रूप में मिश्रित यह कृति 'चम्पू' काव्य है और एक प्रकार [VIII] कुवलयमाला-कथा
SR No.022701
Book TitleKuvalaymala Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Narayan Shastri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2013
Total Pages234
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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