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________________ बिना कैसे जिऊँगी। राम का दू:ख में कैसे सहन करूँगी। वह स्वयं से कहती है कि पुत्र वन को जाएगा एवं पति दीक्षा लेंगे लेकिन मैं अभागिन जिन्दा रहूँगी। हाय में ऐसी वज्र की क्यों बनी हैं वनं व्रजिष्यति सुतः पतिश्च प्रव्रजिष्यति। श्रुत्वाडप्येतन्न यद्दीर्णा कौशल्ये वज्रमय्यसी ॥ 126 सीता जब वन गमनार्थ आज्ञा लेने जाती है तो अपराजिता उसे गोद में बिठाकर कहती है- राम तो पुरुषसिंह है, पर लाडिली, तृ पैदल कैसे चलेगी। 17 तेरा सुकोमल शरीर राम के दुःख का कारण होगा। मैं तुम्हें आज्ञा देना नहीं चाहती।28 निष्कर्षतः अपराजिता को अभिषेक निर्णय पर राम के वन जाने से भारी दुःख हुआ। सुमित्रा लक्ष्मण की माता थी। लक्ष्मण अपने बड़े भाई की सेवार्थ जा रहा है। वे कहती हैं- "साधु वत्मासि में वत्सो ज्येष्ठं यदनुगच्छति" 129 अर्थात् मेरा पुत्र बड़े पुत्र का अनुसरण करेगा यह उत्तम है। हे पुत्र, तुम शीघ्र जाओ, क्योंकि राम काफी आगे निकल गये होंगे - मां नमस्कृत्य वत्सोऽद्य रामभद्रश्चिरं गतः । अतिदूरे भवति ते मा विलम्बस्व बत्स तत् ॥ 130 माँ के इस प्रकार के वचनों के सुनकर लक्ष्मण के मुँह से निकल पड़ा "इदं साध्वम्ब इदं 137 हे माता तुम धन्य हो। अस्तु, राम-अभिषेक के स्थान पर राम वनवास हो जाने पर अपराजिता एवं सुमित्रा दोनों की प्रतिक्रिया राम के प्रति संयमित एवं भरत के प्रति उदार रही है जिसका हेमचंद्र ने सूक्ष्म चित्रण किया है।" (घ) भरत एवं शत्रुघ्न : दशरथ ने जब स्वयं के दीक्षित होने एवं राम को राज्य देने की जानकारी भरत को दी तब उन्होंने भी दशरथ के साथ दीक्षा की इच्छा व्यक्त की। भरत कहने लगे, पिता के बिना मैं जिन्दा नहीं रह सकूँगा।32 मुझे दो कष्ट होंगे, एक तो पिता का विरह एवं दूसरा सांसारिक ताप। 133 राम ने जब भरत को राज्य देने की सहमति दे दी तो भरत बोले- मैं पूर्व में व्रत ग्रहण करने की याचना कर चुका हूँ तब मैं राज्यग्रहण नहीं करूँगा।4 दशरथ व राम के अधिक आग्रह पर भरत कहने लगे- "उचितं ददतां राज्ममाददानस्य मे न तु''13 अर्थात् मुझे राज्य उचित नहीं लग रहा है। राज्य-ग्रहण करने पर मैं माँ का पिछलग्गू कहलाऊँगा।* यह कहकर रुदन करते हुए भरत राम व पिता दशरथ के चरणों में गिर पड़े। ___ भरत अपनी माता कैकेयी के इस अधमकृत्य से खिन्न हुए। त्यागी भरत ने राज्य को आखिर दम तक नहीं स्वीकारा। राम के राज्याभिषेक प्रकरण से उनके वनगमन तक शत्रुन का उल्लेख त्रिपष्टिशलाकापुरुष चरित में नहीं है। अर्थात् उनके बारे में हेमचन्द्र मौन हैं। 77
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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