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________________ नरक में जाने पर यमदूतों द्वारा जीव को सजा मिलती है। यमदूत पृथ्वी लोक से जीवों को बंधन युक्त कर नरक में ले जाते हैं। वहाँ उन्हें कर्मानुसार अनेक प्रकार के नरकों का दंड भुगतने हेतु दिया जाता है। हेमचंद्र ने त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, पर्व-७ में सात प्रकार के नरक बताए हैं- गरमगरम शीशा पिलाना, पत्थरों पर पछाड़ना, फरसी के द्वारा शरीर छेदना आदि सजाएँ नरकों में दी जाती हैं। प्राणियों के कर्मों की सजा पूर्ण होने पर उन्हें नरक से छुटकारा मिलता है। तत्पश्चात् वे जीव पुनः संसार में जन्म लेते हैं। हेमचंद्र कहते हैं कि प्राणियों को मृत्यु के पश्चात् नरक की यातनाओं से बचने के लिए सात्विक कर्म करने चाहिए। रावण जैसा पराक्रमी भी अपने कर्मों के कारण सातवें नरक में गया। उसे अग्निकुंड में डाला गया। उच्च स्वर से चिल्लाते उसे वहाँ से निकालकर गरमगरम तेल के कड़ाह में डाला गया। वहाँ से फिर उसे चिरकालिक भट्टी में डाला गया तब "तड़तड़त-तड़" ऐसी आवाज फूट रही थी। हेमचंद्र कहते हैं कि उन्हें इस प्रकार की भयंकर यातनाएँ देने का कारण उनके दुष्कर्म हैं। अतः प्राणियों को दुष्कर्म से बचना चाहिए। भूरनन्दनराजोडभूद्विपद्याडजगरो बने । दग्धो दावेन सोऽयासीद् द्वितीयां नरकावनिम्। माहेन्द्रकल्पे देवोडभूश्चयुत्वा चेदृगिहा भवः भ्रान्त्वा नरकमेषोडभूत कपिस्तेद्वैरकारणम्। 62 विधाय नरकावासांस्तेन वैतरणीयुतान्। छेदभेदादिदुखं तौ प्राप्येते सपरिच्छदौ ॥3 त्रपुपानाशिलास्फालपर्युच्छेदादिदारुणान् ददर्श नरकांस्तत्र सप्तापि दशकंधरः। 64 वेदमान्यता : जैन रामायण में हेमचंद्र ने वेद तथा शास्त्रों को सम्मानीय स्थान दिया है। हेमचंद्र ने वेदादि प्राचीन ग्रंथों को महान बताया है। उन्होंने ऋग्वेद के पाठ करने तथा सुनने के महत्व को स्पष्ट किया है। उनकी दृष्टि में वेद को मिथ्या मानने वाले एवं उस पर अविश्वास करने वाले पापात्मा हैं । हेमचंद्र वेद-शास्त्रों को धर्मस्वरुप मानते हैं। तत्रान्यदाहमभ्यागामद्राक्षमथ पर्वतम्। व्याख्यानयन्तमृग्वेदं शिष्याणां शेमुषीजुषाम। 65 गुरुर्धर्मेपिदेष्टैव श्रुतिधर्मात्मकैव च। द्वयमप्यन्यथा कुर्वन् मित्र मा पापमर्जय॥ भाग्यवाद : भाग्यवाद हिंदू संस्कृति का मूल तत्व रहा है । हेमचंद्र ने अपनी रामकथा में भाग्यवाद को स्वीकार किया है। दुःख का कारण भले ही जन्मजन्मांतर के कर्म हैं परंतु उसमें भाग्य का भी हाथ रहता है। हेमचंद्र ने भगवान राम द्वारा सीता के त्याग को सीता के भाग्य का खेल कहा है। 62
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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