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________________ आश्चर्य है कि त्रिष्टिशलाकापुरुष, पर्व ७ (जैन रामायण) पर अद्यतन अपेक्षित कार्य नहीं हुआ। इस संस्कृत की मूल कृति का हिन्दी अनुवाद आज भी अप्राप्य है। छुटपुट गुजराती भाषांतर अवश्य प्राप्त होते हैं। जर्मन लेखक डॉ. जी. वूलर ने भी अपनी पुस्तक "लाइफ ऑफ हेमचंद्र" में जैन रामायण का केवल नामोल्लेख ही किया है अधिक कुछ भी नहीं। शायद यह कृति उस समय उन्हें प्राप्त न हुई हो यह भी संभव है। वास्तविकता यह है कि जैन रामकाव्य के संपूर्ण ग्रंथों में "जैन रामायण" नाम से जो कथा या कृति विख्यात है वह हेमचंद्रचार्यकृत त्रिषष्टिशलाकापुरुष, पर्व ७ में आई हुई रामकथा है। इस दृष्टि से जैन रामायण का महत्त्व सर्वोच्च हो जाता है। इसी कारण तो हेमचंद्र के काव्य का मूल्यांकन श्री विटरनीज, वरदाचारी एवं एस. के. डे ने उचित रुप से किया है। त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित-जैन रामायण में कथा के प्रवाह के बीच-बीच में जैन धर्म के सिद्धांतों का आकर्षक रुप से प्रतिपादन किया गया है। कहीं-कहीं गूढ़ दार्शनिक तत्त्वों को काव्य रुप में प्रस्तुत करने के फलस्वरुप शैली में शिथिलता व दुरूहता आ गई है। फिर भी अध्ययन, मनन, एवं अनुशीलन के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि जैन रामायण में त्रैलोक्य का वर्णन है। इसमें परलोक, आत्मा, ईश्वर, कर्म, धर्म, सृष्टि आदि विषयों पर विशद् व्याख्या आई हुई है। दार्शनिक मान्यताओं का स्पष्ट सूक्ष्म विवेचन है। इतिहास, कथा एवं पौराणिक तथ्यों का यथेष्ट समावेश किया गया है। सृष्टि, विनाश, पुनःनिर्माण, देवता-वंश, मानव युग, राजाओं के वंश आदि पुराणीय लक्षण मिलते हैं अत: यह निश्चित रुप से महद् ग्रंथों की कोटि में आता है। गुजरात-नरेश कुमारपाल की प्रार्थना पर लिखा गया यह भव्य ग्रंथ जैन रामकाव्य परंपरा में तो विशिष्टता लिए हुए है ही, साथ ही ब्राह्मण एवं श्रमण परंपरा को संयुक्त करने में सेतुवत् कार्य कर रहा है जिसकी आज के संदर्भ में महति आवश्यकता है। : संदर्भ-सूची: १. संस्कृति के चार अध्याय : दिनकर, पृ. १२९ २. जैनाचार्य रविणेशकृत पद्मपुराण और मानस : रमाकांत शुक्ल, सम्मति से (डॉ. विजयेन्द्र स्नातक) ३. संस्कृति के चार अध्याय : दिनकर, पृ. ८१ ४. हिन्दी साहित्य का इतिहास : डॉ. रामकुमार वर्मा, पृ. ३४० ५. हिन्दी शोध - नये प्रयोग : डॉ. रमानाथ त्रिपाठी, पृ. ८१ ६. हिन्दी साहित्य का इतिहास : डॉ. नगेन्द्र, पृ. १२७ ७. वही, पृ. १२८ ८. वही, पृ. १२७ ९. वही, डॉ. विजयेन्द्र स्नातक का निबंध, पृ. १९७ 21 mm 3 u
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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