SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ में रहते हुए चरण में वज्र, अंकुश व चक्र चिह्न युक्त पुत्र को जन्म दिया। तभी प्रतिसूर्य अंजना को विमान से अपने नगर हनुपुर में लाया। इसी हनुपुर नगर के कारण अंजना के पुत्र का नाम भी हनुमान रखा गया। 41 इधर जब पवनंजय घर आया तो उसे अंजना को निकाल देने की जानकारी मिलते ही वह उसकी खोज में जंगलों में निकल गया। 42 निराश होकर एक दिन ज्यों ही वह चिता में कूद रहा था तभी राजा प्रह्लाद ने आकर उसे पीछे से पकड़ लिया तथा अंजना को शीघ्र खोजने का आश्वासन दिया। 43 अब विद्याधरों के द्वारा हनुपुर में अंजना के होने की खबर मिली। इधर प्रतिसूर्य एवं अंजना व हनुमान को लेकर भूतवन में पहुँचे जहाँ अंजना व पवनंजय का मिलन हुआ। विद्याधरों ने महोत्सव का आयोजन किया। महोत्सव के बाद सभी अपने-अपने घर गए। 45 अंजना व पवनंजय के दिन सुखपूर्वक बीतने लगे। हनुमान अब बाल्यकाल से किशोर होता हुआ युवावस्था की ओर बढ़ने लगा। 46 उपर्युक्त वृत्तांत ब्राह्मण रामकथा परंपरा से भिन्न जैन धर्म की सर्वथा नयी मौलिक कल्पना कही जा सकती है। (३) हनुमान का हजारों कन्याओं से विवाह एवं रतिक्रिड़ा-चित्रण : मानस के हनुमान ब्रह्मचर्य के साक्षात् अवतार हैं, स्त्रियां हनुमान की पूजा अर्चना नहीं कर सकती क्योंकि ब्रह्मचर्य के धनी हनुमान नाराज हो जाते हैं। हनुमान के उपासकों को ब्रह्मचर्य का पालन आवश्यक रुप से करना पड़ता है। वे तो "तेज प्रताप महा जग वंदन'' हैं, जितेन्द्रिय एवं बुद्धिमानों में वरिष्ठ हैं, बल के धाम हैं, उनका शरीर "हेमशैलाभ सम" है, तथा हनुमान तो सदा ही राम-लक्ष्मण व सीता के हृदय में बसे हुए हैं। इधर त्रिषष्टिशलाकपुरुष, पर्व ७ में हेमचंद्र ने उपर्युक्त में से कई विशेषणों को शून्य कर दिया। उन्होंने हनुमान को गृहस्थ, हजारों कन्याओं से रमण करने वाला, साहसी एवं विद्याओं के साधक के रुप में चित्रित किया है। त्रिषष्टिशलाकापुरुष, पर्व ७ के अध्याय तीन के अनुसार यौवनवय को प्राप्त कर हनुमान ने सभी कलाओं को प्राप्त किया एवं विद्याओं की सम्यक् साधना की। 46 वीर हनुमान ने रावण के साथ वरुण से युद्धार्थ प्रस्थान किया। देखते ही देखते हनुमान ने वरुण-पुत्रों को पशुओं की तरह बाँध दिया। 4 विजय के पश्चात् वरुण ने अपनी पुत्री सत्यवती हनुमान को सौंपी। रावण ने भी लंका में आकर अपनी बहन चंद्रनखा की पुत्री अनंगकुसुम को भी हनुमान को सौंप दिया। इसी प्रकार सुग्रीव ने पद्मरागा, नल ने हरिमालिनी एवं अन्य राजाओं ने भी अपनी हजारों पुत्रियों को हनुमान को सौंपा। 50 191
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy