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________________ बात यह है कि सीता रावण की पुत्री है।" वह मंदोदरी की औरस पुत्री है। सीता जन्म का यह रुप पहले-पहल संघदास के वसुदेव हुंडी में आया हुआ है। गुणभद्राचार्य के उत्तरपुराण (९वीं शती) में कथा का दूसरा रुप मिलता है। "विमलसूरि की परंपरा में रामकथा परंपरानुकूल है परंतु गुणभद्राचार्य की परंपरा में" उत्तरपुराण में ब्राह्मण परंपरा से भिन्न जैन साम्प्रदायिकता का अनुकरण करके चली है। आदिपुराण में प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ का चरित है। उत्तरपुराण में शेष तेइस तीर्थंकरों और अन्य शलाकापुरुषों का चरित आया है। आदिपुराण में बारह हजार थोक और सैंतालिस अध्याय हैं। "इसमें से बयालिस पर्व पूरे और तैंतालिसवें पर्व के तीन थोक जिनसेन के एवं शेष चार पवों के सोलह सौ बीस श्रीक उनके शिष्य के हैं। 22 इस प्रकार आदिपुराण के १०३८० थोक जिनसेनकृत हुए। गुणभद्र परमेश्वरकवि की रचनाओं पर निर्भर माने गये हैं। उत्तरपुराण : उत्तरपुराण में राम को वाराणसी का राजा माना गया है। राम की माता सुबाला तथा लक्ष्मण की माता कैकेयी है। सीता की उत्पत्ति मंदोदरी के गर्भ से बताई गई हैं। इस ग्रंथ में भरत व शत्रुघ्न की माता का नाम नहीं दिया गया है। इस कृति में लंकादहन व सीता-त्याग प्रसंग अप्राप्य है। लक्ष्मण को सौलह हजार रानियों का पति तथा राम.को आठ हजार रानियों का पति बताया गया है। सीता को यहाँ आठ पुत्रों की माता बतायी गयी है। उत्तरपुराण की यह कथा श्वेताम्बर संप्रदाय में प्रचलित नहीं है। महापुराण : गुणभद्र की परंपरा का अनुसरण पुष्पदंत ने अपनी महापुराण में किया। महापुराण का अन्य नाम "पउमचरिउ" या पद्मपुराण भी है। पुष्पदंत ने अपनी रामकथा को रामायण कहा है। अर्थात् वाल्मीकि रामायण के अनुकरण की आग्रहशीलता प्रतीत होती है। 23 महापुराण की रचना दसवीं शती ई. में हुई। ग्रंथ के "उत्तरपुराण खंड में ६९वीं संधि से ७९वीं संधि तक रामकथा वर्णित है। चामुंडराय के अनुसार इस परंपरा के नाम से ग्रंथ लिखने वाले कवि हैं- कूचिभट्टारक, नन्दिमुनीश्वर, कविपरमेश्वर, जिनसेन और गुणभद्र । अधिकतर जैन रामकथाओं में गुणभद्र की रामकथापरंपरा ही मिलती है। गुणभद्र की परंपरा भी संस्कृत, प्राकृत, कन्नड आदि में फली-फूली जिसे इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता हैसंस्कृत १. गुणभद्रकृत "उत्तरपुराण'' (नवीं श. ई.) २. कृष्णदासकविकृत "पुण्यचंद्रोदयपुराण'' (१०वीं श. ई.) प्राकृत १. पुष्पदंतकृत "तिसरही महापुरिस-गुणालंकार' (११वीं श. ई.) कन्नड़ १. चामुडरायकृत त्रिषष्टिशलाकापुरुषपुराण (११वीं श. ई.) २. बंधुवर्माकृत "जीवनसंबोधन'' (१२०० ई.) ३. नागराजकृत - पुण्याश्रवकथासार (१३३१ ई.) 17
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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