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________________ सीता : मुझे, राम की पत्नी को हरण करने वाला तू यमराज की दृष्टि से देखा गया है। अरे, नष्ट आशा वाले, तेरी आशा को धिक्कार है । लक्ष्मण सहित राम के शत्रुओं के नाश करने पर तू जिन्दा नहीं रह सकेगा। 365 इन संवादों की लम्बी सची से स्वतः स्पष्ट है कि जैन रामायण में अवान्तर कथाओं की भरमार होने से संवाद योजना विस्तृत एवं तात्विक दृष्टि से खरी उतरती है। अतः संवाद मनौवैज्ञानिक कम हैं परंतु कथ्यात्मक अधिक लगते हैं। (६) काव्य रुप : महाकाव्यत्व : साहित्य शास्त्र में काव्य के अनेक भेद मिलते हैं। "जहाँ तक पद्य साहित्य का संबंध है, प्रबंधकर्ता के आधार पर उसके दो भेद किए जाते हैं- प्रबंधकाव्य एवं मुक्तककाव्य । प्रबंधकाव्य के पुनः तीन उपभेद किए जाते हैं-- महाकाव्य, खण्डकाव्य और एकार्थकाव्य! 3& भारतीय काव्यशास्त्रीय परंपरा में काव्यरुपों पर क्रमशः भामह, दण्डी, वामन, रुद्रट, विश्वनाथ आदि ने अपने अपने ग्रंथों में विवेचन किया है। समय-समय पर साहित्याचार्यों द्वारा निर्धारित महाकाव्य के लक्षणों का अध्ययन करने से ज्ञात है कि१. महाकाव्य सर्गबद्ध हो। सर्ग आठ से अधिक हों। आकार सामान्य हो। प्रारंभ प्रणाम, आशीर्वचन एवं विषय निर्देश सहित हो। सर्गान्त में अगले सर्ग की सूचना समाहित हो।। २. प्रत्येक सर्ग में एक ही छंद प्रयुक्त हो परंतु अंतिम छंद भिन्न हो। एकाध सर्ग विभिन्न छंदों वाला भी हो सकता है। ३. महाकाव्य निर्माण में इतिहास-प्रसिद्ध घटना का संयोजन एवं कथावस्तु का विकास नाटकीय संधियों की सहायता से हो। ___ कोई देवता या महानगुणों से युक्त धीरोदात्त क्षत्रिय नायक हो। ५. शृंगार, वीर एवं शांत में से ही कोई अंगी-रस हो, अन्य रस सहायक हों। ६. महाकाव्य का उद्देश्य पुरुषार्थ चतुष्टय (अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष) में से एक हो। ७. संध्या, सूर्य, चंद्र, प्रभात, वन, नदी, निर्झरादि का सांगोपांग वर्णन हो। ८. कथानक या नायक के नामानुसार अथवा विशिष्ट आधार पर महाकाव्य का नामकरण हो। महाकाव्य के लक्षणों की विवेचना करने वाले पाश्चात्य काव्यशास्त्रियों में अरस्तू के बाद प्रमुखतः डब्ल्यु पी. कर, एबरक्रोम्बी, सी. एम. बाबरा, बाल्टेयर तथा मैकनील डिक्सन के नाम लिए जा सकते हैं। इनके अनुसार महाकाव्य में ___ "महान उद्देश्य, महान प्रेरणा, महान काव्य प्रतिभा, सत्व, गंभीरता एवं काव्य प्रतिभा, महानकार्य, युग जीवन का समग्र चित्र, सुसंबद्ध जीवन 163 ر
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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