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________________ १७. अंत:पुर की रानियों का विलाप वर्णन 229 १८. राम-विरह विलाप वर्णन 230 ९. अन्य वर्णन : १. पशुवध निषेध वर्णन 231 २. सत्य महिमा वर्णन 232 ३. कु-आचरण हेतु उपदेश वर्णन 233 ४. सिंह द्वारा मुनि भक्षण वर्णन 234 ५. वृद्धावस्था वर्णन 235 ६. जटायु-वर्णन 236 ७. सैन्य दुर्गों का वर्णन 237 ८. नरक की यातनाओं का वर्णन 238 ___ इन वर्णन सूचियों से यह स्पष्ट हो जाता है कि त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित, पर्व ७ विभिन्न वर्णनों से युक्त चरितकाव्य है। इस सूची के अतिरिक्त भी अनेक संक्षिप्त वर्णन कृति में समाहित हैं परंतु उनका महत्व न होने के कारण उन्हें सूची में नहीं लिया गया है। अस्तु, जैन रामायण के वर्णन अलंकारिक, रसयुक्त, स्वाभाविकता युक्त, अवसरानुकूल एवं वर्णन कौशल के मानदंडों पर खरे उतरने वाले हैं। अधिक स्पष्टता के लिए हम हेमचंद्र के कुछ वर्णनों के उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं : .. प्रकृति वर्णन : प्रकृति के वर्णन चारुतायुक्त बन पड़े हैं। सूर्यास्त, चंद्रोदय रात्रि, तारागण आदि का वर्णन इस प्रकार किया गया है- "गगनरुपी अरण्य में परिभ्रमण के श्रम से स्नान की इच्छा वाला सूर्य उस समय पश्चिमसमुद्र में डूब गया। पश्चिम दिशा को भोगकर जाते हुए सूर्य से संध्या के बादल मानों पश्चिम दिशा के वस्त्रों को छल से दूर कर रहे थे। अरुण मेघ परंपरा पश्चिम दिशा को भोगेगा ऐसे अपमान से युक्त पूर्व दिशा का मुख म्लान हो गया था। क्रीडास्थल का त्याग करने से जो पीड़ा हुई वह पक्षियों के क्रन्दन से स्पष्ट हो रही थी। रजस्वला स्त्री की भांति चक्रवाकी अपने पति से अलग हो , रही थी। पतिव्रता की भांति सूर्य रुपी पति अस्त होने पर कमलिनी उच्च प्रकार । से मुख संकोच कर रही थी। गायें वन से पुनः घर की ओर आ रही थीं। राजा जैसे युवराज को राज्य संपत्ति देता है वैसे ही अस्त होते सूर्य ने अपना तेज अग्नि को सौंप दिया। नगर स्त्रियों ने आकाश के नक्षत्रों की शोभा को चुराने वाले दीपकों को प्रकट किया। अंधकार इस प्रकार बढ़ने लगा जैसे अंजनगिरी के चूर्ण से, काजलयुक्त पात्र की तरह भूमि व आकाशरुपी पात्र अंधकार पूर्ण हो गया हो। उस समय अपना हाथ भी दीखता नहीं था। श्यामाकाश में तारे चोपटकोडियों की तरह दीख रहे थे। स्पष्ट नक्षत्र वाला काजल जैसा श्याम गगन, 153
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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