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________________ लोहांकुशोपमनखं शिलासदृगुरः स्थलम्। पंचाननयुवानं ते समायान्तमयश्यताम् ॥ (३/१८८-१८९) अप्रस्तुतप्रशंसा : शराशरि चिरं कृत्वा यमोऽधाविष्ट वेगतः । शुण्डादण्डमिव व्योलो दण्डमुत्पाट्य दारुणम् ।। (२/१५२) उपर्युक्त अलंकारों के उदारहण तो संकेत मात्र ही हैं वास्तविकता तो कृति के अवलोकन से ही जानी जा सकती है। पाठकों को वास्तविक आनंद प्राप्त करने के लिए ग्रंथ को पढ़ना चाहिए। हमने जिन अलंकारों के उदाहरण यहां प्रस्तुत किए हैं, संभव है, उनके अतिरिक्त भी अनेक अलंकार कृति में मौजूद हों, परंतु हमारा लक्ष्य यहाँ अलंकारों का वर्णन करना न होकर दिशामात्र संकेत करना हैं। अतः इन उदारहणों से स्पष्ट है कि त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, पर्व ७ अलंकार- विधान की दृष्टि से उत्तम कोटि के काव्यों में गण्य ग्रंथ हैं। __उपमा, रूपक एवं उत्प्रेक्षा तो कृति में अनवरत दौड़ लगाते प्रतीत होते हैं तथा शेष अलंकार भी यथाप्रसंग अपनी उपस्थिति देने में हिचकिचाए नहीं हैं । अस्तु, हेमचंद्र का शत-प्रतिशत अलंकाराधिकार परिपुष्ट है। (३) वर्णन कौशल : लोकोत्तर वर्णन में निपुण कविकर्म को काव्य कहा गया है। 47 काव्य की पूर्णता वर्णन से ही संभव है। कवि की निपुणता का आभास वर्णनों को देखने से मिल जाता है। कवि के वर्णन जितने स्वाभाविक, मनोहर एवं आकर्षक होंगे, जनमानस में वह काव्य उतना हो ख्यातिप्राप्त होगा। साहित्यदर्पणकार विश्वनाथ ने वर्णन के लिए कुछ बिंदु चुने हैं जिसे सूची के रुप में स्वीकारा गया है। संध्या, सूर्य, चंद्र, रात्रि, प्रदोष, दिवस, प्रात:काल, मध्याह्न, पर्वत, वन, सागर, शिकार, संभोग, मुनि, स्वर्ग, नगर, युद्ध, मंत्र, पुत्रजन्म, उत्सव आदि। वर्णनात्मक पदकाव्य में वर्णनों का स्थान महत्वपूर्ण होता है। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित पर्व ७ (जैन रामायण) के १ से १० सर्गों को आद्यान्त पढ़ने पर ज्ञात होता है कि हेमचंद्र का मन वर्णनों में पर्याप्त मात्रा में रमा है। केलि वर्णन, स्थल वर्णन, जलक्रीडा वर्णन, युद्ध वर्णन, प्रकृति वर्णन आदि को कवि ने विस्तार दिया है। ये सभी वर्णन हमें स्वाभाविक, मनोहर एवं रसमय प्रतीत होते हैं। अनेक स्थलों पर एक ही वस्तु को नवीन प्रकार से अनेक बार प्रस्तुत किया गया है, जो पाठकों को आकर्षित करता है। हेमचंद्र के वर्णनों को निम्न सूची में प्रस्तुत किया जा सकता है। १. धार्मिक वर्णन : १. मुनि वर्णन 147
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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