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________________ आस्फलद्वीचिनि चयमणिसोपान बंधुरा। बद्धोभयतटा रत्नोपलैर्वापी बभूव सा ॥ ननृतु ददाधा : रवे सीताशीलप्रशंसिनः सीतो परिष्टाष्तुटाश्च पुष्पवृष्टि व्युधः सुराः ॥1 शांत : पूर्व में हम कह चुके हैं कि जैन रामायण में लगभग साठ हजार राजा-रानियों के दीक्षाग्रहण करने का वर्णन आया है। दीक्षा लेने के पीछे जगत से वैराग्य का कुछ न कुछ कारण अवश्य रहा है । इष्टजन की मृत्यु का खेद, स्वयं के अपराध पर खेद, अस्त होते सूर्य से वैराग्य की प्रेरणा, साधुओं से पूर्वभव सुनकर वैराग्य-प्रेरणा, स्वयं की समझ से व्रत ग्रहण, लोकापवाद अथवा मानभंग से संसार से विरक्ति, वृद्धावस्था आदि कारणों 4 से जब कोई व्यक्ति जगत को अनित्य समझने लगता है एवं वैराग्य की भावना उसमें घर कर जाती है तब कवि के लिए शांत रस को अभिव्यक्त करने का मार्ग प्रशस्त होता है। हेमचंद्र के सामने ऐसे अनेक प्रकरण आए हैं जिनका उन्होंने भरसक लाभ उठाया। कुछ अंश उदारहणार्थ यहां प्रस्तुत हैं तैनैवं दर्शितैस्तैहैंतुभिर्जातचेतनः।। रामो दध्यौ किं नु सत्यं न जीवति ममानुजः ॥ ततस्तौ लब्दबोधाय रामाय स्वमशंसताम् ॥ दैवो जटायुः कृतान्तौ निजस्थानं च जग्मतुः ॥ मृतकार्य ततौ रामश्चकार स्वानुजन्मनः ॥ दीक्षां प्रपित्सुः शत्रुध्नं राज्यादानाय चादिशत् ॥ 25 इत्श्च हनुमांश्चैतै चैत्यवन्दनहैतवै। मेरुंगतो निवृत्तोऽस्तमयंतं सूर्यमैक्षत ॥ एवं च दध्वाबुदयो यथा ह्यस्तं तथा खलु ॥ निदर्शनमयं सूर्यो धिधिक् सर्वमशाश्वतम् ॥ एवं विचिन्तय स्वपुरे गत्वा राज्यं सुते न्यधात् । धर्मरत्नाचार्यपाश्र्वे प्रवव्रज्यामाददे स्वयम् । 26 वात्सल्य : शृंगार की तरह वात्सल्य के भी दो पक्ष हैं- संयोग एवं वियोग। दोनों पक्षों की अभिव्यक्ति जैन रामायण में हुई है। वात्सल्य के प्रमुख स्थल हैं- पवनंजय के विवाह पर उसके माता-पिता की प्रसन्नता, अंजना का पुत्र जन्म पर उसका हर्ष, राम-लक्ष्मण की बालक्रीड़ाएं, विदेह का जन्म एवं जनक का पुत्री-वात्सल्य, लवण एवं अंकुश की बालक्रीड़ाएँ आदि । राम एवं लक्ष्मण बाल्यावस्था में दशरथ के गोद की शोभा बढ़ाते हैं। वे कभी उनकी मूछों के बाल खींचते हैं तो कभी राजसभा में दशरथ की गोद से उठकर अन्य राजाओं की गोद में जा बैठते हैं। 137
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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