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________________ रे रे रावण दुष्टात्मस्तिष्ठ तिष्ठ क्व यास्यसि। एष प्रस्थापयामि त्वां नचिराय महापते ॥ १. इत्याकर्ण्य वचो रामः पपात भूवि मूर्छया। संभ्रमाल्लक्ष्मणैनैत्य सिषिचे चंदनांभसा। २. उत्थाय विललापैवं क्व सा सीता महासती। सदा खलानां लोकानां वचसा ही मयोज्झिता ।। ३. प्रतिस्थलं प्रतिजलं प्रतिशैलं प्रतिद्रुमम्। रामो गवेषयामास ददर्श न तु जानकीम् ॥" इसी प्रकार की करुण रस युक्त विचाराभिव्यक्ति हेमचंद्र की जैन रामायण में ढूंस-ठूस कर भरी है जो ग्रंथावलोकन पर ही हृदयगोचर हो सकती है। रौद्र : 'वीर' एवं रौद्र एक दूसरे के पूरक हैं। जैन रामायण में हेमचंद्र ने अवसरानुकूल रौद्र रूप प्रस्तुत किए हैं। इसमें अनेक युद्धों के वर्णनों में रौद्र की अभिव्यंजना हुई है यथा- इन्द्रजीत के विभीषण पर क्रोधित होने के प्रसंग में, विभीषण द्वारा रावण को स्तंभ लेकर मारने के प्रसंग में, रावण व बंदर सेना के युद्ध प्रसंग में , लक्ष्मण-रावण युद्ध तथा अनेक स्थलों पर रौद्र रस का परिपाक हुआ है। लक्ष्मण के क्रोध का हेमचंद्र ने अतिरौद्र चित्र प्रस्तुत किया है। लक्ष्मणस्तगिरा कुद्वोऽभ्यधाद्रे दूतपांशन। स्वशक्तिं परशक्तिं वा वेत्यद्यापि न रावणः ॥ यथा सोऽपितथैकाऽगः कियत्स्थास्यति रावणः ॥ कृतान्त इव सज्जो में तं व्यापादयितुं भुजः।" लक्ष्मण के पराक्रम के सामने रावण ने भयंकर मायावी रूप पैदा किए : स्मृतिमात्रोपस्थितायां विद्यायां तत्र रावणः । विचक्रे भेरवाण्यांशु स्वानि रूपाण्यनेकशाः ॥ भूमौ नभसि पृष्ठेऽग्रे पार्श्वयोरपि लक्ष्मण :। अपश्यद्रावणानेव विविधायुध वर्षिणः ॥4 वीर : जैन रामायण में हेमचंद्र ने वीर रस की सर्वाधिक अभिव्यक्ति की है। सूक्ष्मता से अवलोकन किया जाए तो दानवीर, दयावीर, धर्मवीर एवं युद्धवीर, ये चारों ही वीर-रूप कृति में उपलब्ध होते हैं। युद्धवीर के कतिपय प्रसंग निम्नांकित है- पुष्पत्तर- श्रीकंठ युद्ध, तड़ित्केश-वानरों का युद्ध, सुकेशपुत्र-लंकापुत्र युद्ध, इन्द्र-माली युद्ध, सूर्यरजा-ऋक्षरजा का युद्ध, इन्द्ररावण युद्ध, अतिवीर्य-लक्ष्मण युद्ध, असली व नकली सुग्रीव युद्ध, रामनकली सुग्रीव युद्ध, हनुमान व महेन्द्र युद्ध, लंका सुन्दरी-हनुमान युद्ध, हनुमान-अक्षयकुमार-इन्द्रजीत युद्ध, युद्धभूमि में अनेक राजाओं के युद्ध, 134
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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