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________________ сл त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, पर्व 7 ( जैन रामायण) का काव्य सौष्ठव किसी भी काव्य के दो रुप हैं, भाव पक्ष एवं कला पक्ष । समालोचक अध्ययन की सुविधा के लिए दोनों पक्षों की अलग-अलग विवेचना करते हैं । रस विवेचना काव्य के भाव पक्ष का अंग माना गया है। कलापक्षान्तर्गत भाषा, छन्द, अलंकार, काव्यगुण-दोष, शब्द शक्ति, वर्णन कौशल, संवाद कौशल, संगीत विधान आदि पर विचार किया जाता है। चौथे अध्याय में कथावस्तु शीर्षकान्तर्गत जैन रामायण की संक्षिप्त कथा प्रस्तुत की गई है। यहां काव्य सौष्ठव में भाव पक्ष के अंतर्गत आने वाले रस पर भी विचार कर कला पक्ष के समस्त अवयवों पर दृष्टिपात किया गया है। (१) रस व्यंजन : प्रत्येक काव्य का एक अंगी रस होता है तथा अन्य रस उस मुख्य रस के इर्दगिर्द भासित होते हैं । त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, पर्व ७ का अंगीरस है शांत। वीर, श्रृंगार तथा रौद्र आदि उसके प्रधान अंग हैं। श्रृंगार-संयोग तथा वियोग : त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में निम्नांकित प्रसंगों में संयोग श्रृंगार के उदारहण उपलब्ध होते हैं - १. सहस्रहार की रानी चित्रसुन्दरी का इन्द्र से संयोग का प्रसंग, २. तड़ित्केश राजा का रानियों के साथ नंदनवन में क्रीड़ारत होना, ३. रावण एवं मंदोदरी की केलि, ४. छ: हजार अप्सराओं व कन्याओं के साथ रावण की केलि, ५. सहस्रांशु की जल क्रीड़ा, ६. अंजना पवनंजय क्रीड़ा, ७. हनुमान व लंका सुन्दरी की क्रीड़ा, ८. अनेक स्त्रियों के नख- - शिख सौदर्य वर्णन' आदि। यहाँ हम दो उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं 131
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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