SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३३. वही, ४/८२१ १३४. वही, ४/४३४ १३५. वही, ४/४३९ १३६. सत्यम् मातृमुखोडस्मयेष गर्वष गर्वमेवं करांति चेत। त्रिशपुच. ७-४/४४० १३७. त्रिशपुच. पर्व ७ ४/४२३-२५ १३८. वही, ४/४२६ १३९. त्रिशपुच पर्व ७-४/४३२ १४०. रामो राजानामित्युवे भरतो मयि सत्यसौ । राज्यम् नादास्यते तस्माद वनवासाय याम्यहम् ॥ ७/१४१ १४१. इयच्चिरं वरं धृत्वा याचते साडनय्था कथम् । वही-४४६७ १४२. त्रिशपुच. पर्व ७ /४६७ १४३. वही, ४/४४९ १४४. अतिदूरे भवति ते मा विलंबस्व वत्स तत् ॥ त्रिशपुच. पर्व ७-४/४७५ १४५. वेगात्तानन्बधावन्तानुरागेण गरीयसा। नागरा: क्रूर कैकेयी विध्योराक्रोशदायिनः ॥ १४६. त्रिशपुच. पर्व ७-४/४६८ १४७. वही, ४/४४/८८-४८९ १४८. रतश्च भरतो राज्यं नाददे किं तु प्रत्युत। १४९. वही, ४/४९१ १५०. उपाध्वं भरतं मद्वत्तातबद्वापयतः परम् ॥ त्रिशपुच. पर्व ७-४/३९९ १५१. त्रिशपुच. पर्व ७, ४/३९९ १५२. त्रिशपुच. पर्व ७-५०२ १५३. वही, ४-५०३ १५४. वही, ४/५२९ १५५. त्रिशपुच. पर्व ७ - ४/५०४ १५६. वही, ४/५१० १५७. त्रिशपुच. पर्व ७ - ४/५०५ १५८. त्रिशपुच. पर्व ७-४/५०७ १५९. भरतेन समं गत्वा तौ वत्सो राम लक्ष्मणो। अनुनीय समानेष्याभ्यनुजानीहिनाथ माम्। वहीं - ४/५०९ १६०. वही, ४/५१० १६१. कैकेयी भरतो षड्भिःप्राप्तुस्तद्वनंदिनै।। अपशयतां द्वमूले च जानकीराम लक्ष्मण ॥ त्रिशपुच प. ७. ४/५१ 116
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy