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________________ ७४/तीर्थकर चरित्र विधि तप से आत्मा को निखारते हुए फाल्गुन कृष्णा सप्तमी के दिन वे दीक्षा-स्थल सहस्राम्र वन में पधारे। उस दिन वहीं पर प्रियंगु वृक्ष के नीचे प्रभु को घातिक कर्म क्षय होने से केवलज्ञान प्राप्त हो गया। . ___ केवल महोत्सव के बाद विशाल जनसभा में भगवान् ने प्रथम देशना दी। और चतुर्विध संघ की स्थापना हुई। निर्वाण भगवान् चंद्रप्रभ ने लाखों लोगों का उद्धार किया। जीवन का अंत समीप समझकर एक हजार सर्वज्ञ मुनियों के साथ सम्मेद शिखर पर चढ़े और अनशन किया। एक मास के अनशन में चार अघाती-कर्मों को क्षय कर उन्होंने सिद्धत्व को प्राप्त किया। प्रभु का परिवार० गणधर ९३ ० केवलज्ञानी १०,००० ० मनः पर्यवज्ञानी ८,००० ० अवधिज्ञानी ८,००० ० वैक्रिय लब्धिधारी १४,००० ० चतुर्दश पूर्वी २,००० ० चर्चावादी ७,६०० ० साधु २,५०,००० ० साध्वी ३,८०,००० ० श्रावक २,५०,००० ० श्राविका ४,९१,००० एक झलक० माता लक्ष्मणा ०पिता महासेन ० नगरी चंद्रपुरी वंश इक्ष्वाकु काश्यप ० चिन्ह चंद्रमा ० वर्ण श्वेत ० शरीर की ऊंचाई १५० धनुष्य ० यक्ष विजय ० यक्षिणी भृकुटि ० ० गोत्र
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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