SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७० / तीर्थकर चरित्र दीक्षा अवधिज्ञान से उन्होंने अपना दीक्षा का समय निकट देखा और उत्तराधिकारी को राज्य व्यवस्था सौंप स्वयं अलग हो गए। लोकान्तिक देवों द्वारा औपचारिक प्रतिबोध पाने के बाद राजा· सुपार्श्व ने वर्षीदान दिया। तेजस्वी व शांत स्वभावी सम्राट् के दीक्षा प्रसंग ने लोगों को विस्मित बना दिया। लोग इस प्रसंग से प्रेरित भी हुए। ज्येष्ठ शुक्ला त्रयोदशी के दिन एक हजार व्यक्तियों के साथ वे नगर के सहस्राम्र उद्यान में पहुंचे। देवता और मनुष्यों की भारी भीड़ के बीच उन्होंने पंचमुष्टि लुंचन किया और सावद्य योगों का त्याग किया। दीक्षित होने के नौ महिनों तक प्रभु छद्मस्थ रहे, विविध तपस्या व ध्यान से महान् कर्म निर्जरा की तथा विचरते - विचरते पुनः उसी सहस्राम्र उद्यान में पधारे। फाल्गुन कृष्णा षष्ठी के दिन शुक्ल-ध्यानारूढ़ बनते हुए आपने क्षपकक्षेणी ली और क्रमशः कर्म प्रकृतियों को क्षय कर सर्वज्ञ बन गये। देवों ने केवल- महोत्सव किया, समवसरण की रचना की। प्रभु के प्रथम प्रवचन में ही हजारों हज़ारों स्त्रीपुरूष एकत्र हो गये | भगवान् ने देशना दी । त्याग और भोग के पथ अलग- अलग बतलाये । प्रभु से ताकि विवेचन सुनकर अनेक व्यक्तियों ने निवृत्ति पथ को अपनाया । निर्वाण आर्य जनपद में अध्यात्म का अद्भुत आलोक फैलाते हुए भगवान् ने जब अन्त समय निकट देखा तो पांच सौ मुनियों के साथ सम्मेदशिखर पर चढ़े और वहां आजीवन अनशन ग्रहण किया। एक मास के अनशन में समस्त कर्मों का क्षय करके उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया । प्रभु का परिवार ० गणधर ० केवलज्ञानी ० मनः पर्यवज्ञानी ० अवधिज्ञानी ० वैक्रिय लब्धिधारी ० चतुर्दश पूर्वी ० चर्चावादी ० साधु ● साध्वी III ९५ ११,००० ९.१५० ९००० १५,३०० २०३० ८४०० ३,००,००० ४,३०,०००
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy