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________________ ६६/तीर्थकर चरित्र श्रेणी ली और यथाख्यात चारित्र पाकर घाती- कर्मों का क्षय करके सर्वज्ञता प्राप्त की। देवों ने मिलकर उत्सव किया। समवसरण की रचना की। भगवान् ने अध्यात्म का आलोक प्रसारित किया। अनेक भव्य लोग उससे आलोकित हुए। उन्होंने आगार व अणगार धर्म ग्रहण किया। भगवान् के प्रथम प्रवचन में ही चारों । तीर्थ स्थापित हो गए। निर्वाण भगवान् आर्य जनपद में विचरते रहे। लाखों- लाखों भव्य लोग उनकी अमृत वाणी से प्रतिबोध पाते रहे और अन्त में अपने आयुष्य का अन्त निकट देखकर सम्मेदशिखर पर उन्होंने एक सौ तीन मुनियों के साथ एक मास के अनशन में योगों का निरोध कर चार अघाति- कर्मों (वेदनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र) को क्षय करके सिद्धत्व को प्राप्त किया। प्रभु का परिवार० गणधर १०७ ० केवलज्ञानी १२,००० ० मनः पर्यवज्ञानी १०.३०० ० अवधिज्ञानी १०,००० ० वैक्रिय लब्धिधारी १६,८०० ० चतुर्दश पूर्वी २३०० ० चर्चावादी ९६०० ० साधु ३,३०,००० ० साध्वी ४,२०,००० ० श्रावक २,७६,००० ० श्राविका ५,०५,००० एक झलक० माता सुसीमा पिता ० नगरी कौशम्बी ० वंश ० गोत्र काश्यप ० चिन्ह कमल ० वर्ण लाल (रक्त) ० शरीर की ऊंचाई २५० धनुष्य ० यक्ष कुसुम धर इक्ष्वाकु
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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