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________________ ६२/तीर्थकर चरित्र धर्मध्यान व शुक्ल-ध्यान से अपूर्व कर्म- निर्जरा करके प्रभु ने यथाख्यात चारित्र प्राप्त किया तथा तेरहवें गुणस्थान में तीन घाती- कर्म को क्षय कर सर्वज्ञता प्राप्त की। देवों ने उत्सव किया। समवसरण की रचना की गई। देव दुंदुभि सुनकर लोग बड़ी संख्या में प्रवचन में उपस्थित हुए । भगवान् ने प्रथम देशना में तीर्थ की स्थापना की। आगार व अणगार धर्म की विशेष विवेचना दी। बड़ी संख्या में लोगों ने अपनीअपनी शक्ति के अनुसार महाव्रत या अणुव्रत ग्रहण किए। निर्वाण ___ भगवान् ने अपना आयुष्य निकट समझ कर १००० साधुओं के साथ सम्मेद शिखर चढ़कर एक मास का अनशन किया और मुक्ति का वरण किया। प्रभु का परिवार० गणधर १०० ० केवलज्ञानी १३,००० ० मनः पर्यवज्ञानी १०,४५० ० अवधिज्ञानी ११,००० ० वैक्रिय लब्धिधारी १८,४०० • चतुर्दश पूर्वी २,४०० ० चर्चावादी १०.४५० ० साधु ३,२०,००० ० साध्वी ५.३०,००० ० श्रावक २,८१,००० ० श्राविका ५,१६,००० एक झलक० माता मंगला ० पिता मेघ ० नगरी अयोध्या ० वंश इक्ष्वाकु काश्यप ० चिन्ह क्रौंच ० वर्ण. सुवर्ण ० शरीर की ऊंचाई ३०० धनुष्य ० यक्ष तुंबुरू ० यक्षिणी महाकाली ० गोत्र
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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