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________________ (५) भगवान् श्री सुमतिनाथ पूर्व भव तीर्थंकर सुमतिनाथ का जीव पूर्व जन्म में जंबू द्वीप के पूर्व महाविदेह की पुष्कलावती विजय में सम्राट् विजयसेन के महल में चिर अभिलषित पुत्र के रूप में पैदा हुआ था। इनसे पहले सम्राट् के घर कोई संतान नहीं होने से महारानी सुदर्शना अत्यधिक चिंतित रहती थी। एक बार वह उपवन में घूमने गई। वहां उसने एक श्रेष्ठि-पत्नी के साथ आठ पुत्रवधुओं को देखा। उसे अपनी रिक्तता खलने लगी, दिल विषाद में डूब गया। वह महल में आकर सिसकियां भरने लगी। राजा के पूछने पर उसने सारा प्रकरण कह सुनाया। राजा ने कहा- तुम रोओ मत मैं तेले की तपस्या करके कुलदेवी से पूछ लेता हूं ताकि तुम्हारी जिज्ञासा शांत हो जाए। राजा ने पौषधशाला में अष्टम (तेला) तप सम्पन्न किया । कुलदेवी उपस्थित हुई । राजा ने संतान प्राप्ति के विषय में जिज्ञासा की । देवी ने कहा- तुम्हारे एक पुत्र स्वर्ग से च्यवकर उत्पन्न होगा। राजा ने यह सुसंवाद रानी को सुनाया कि हमारे पुत्र रत्न होगा, चिंता मत करो। अब रानी पुत्र- प्राप्ति की प्रतीक्षा में दिन बिताने लगी । क्रमशः रानी के गर्भ रहा तथा गर्भकाल पूरा होने पर एक तेजस्वी एवं अत्यधिक्र रूपवान बालक को उसने जन्म दिया। राजा ने बालक का नाम पुरूषसिंह रखा। बड़े लाड - प्यार से बालक का लालन- पालन हुआ । एक दिन कुंवर पुरूषसिंह उद्यान में भ्रमण हेतु गया। वहां उसे विजय नंदन आचार्य के दर्शन हुए। आचार्य देव से तात्त्विक विवेचन सुना । कुछ क्षणों के सान्निध्य ने ही कुंवर के अन्तर् नेत्र खोल दिये। अपने हिताहित का भान उसे हो गया। भौतिक उपलब्धियों से कुंवर को विरक्ति हो गई । उभरती युवावस्था में तीव्र विरक्ति से गुरु चरणों में कुंवर दीक्षित हो गया । पुरुषसिंह मुनि अणगार बनने के बाद उत्कृष्ट तप और ध्यान में लगे। कर्म- निर्जरा के बीस स्थानकों की उन्होंने विशेष साधना की, उत्कृष्ट कर्म- निर्जरा के द्वारा तीर्थंकर पद की कर्म- प्रकृति का बंध किया । आराधनापूर्वक आयुष्य पूर्ण कर वे
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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