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________________ • ४०/तीर्थंकर चरित्र पूरी कोशिश की पर असफल रहे। चक्र आगे बढ़ता गया पर भरत के ही परिवार के सदस्य एवं चरम शरीरी होने के कारण चक्र रत्न भी बाहुबली की प्रदक्षिणा करके लौट गया। बाहुबली की इस विजय से गगन विजय घोषों से गूज उठा। बाहुबली ने रूष्ट होकर जब भरत पर प्रहार करने के लिए मुष्टि उठाई तब सबके दिल कांप गये। सबने एक स्वर में प्रार्थना की- क्षमा कीजिए! सामर्थ्यवान् होकर जो क्षमा करता है वह बड़ा होता है। आप भूल को भूल जायें। बाहुबली के उठे हुए हाथ खाली कैसे जा सकते थे। उन्होंने अपने उठे हुए हाथों को अपने ही सिर पर रखा, बालों का लोच किया और श्रमण-निर्ग्रन्थ बन गये। बाहुबली व भरत को केवल ज्ञान 'छोटे भाइयों को वंदन कैसे करूं' इस अहं भावना से प्रेरित होकर बाहुबली भगवान् ऋषभदेव की सेवा में उपस्थित नहीं हुए। वहीं पर उत्कट साधना में लग गये । एक वर्ष बीत गया अडोल ध्यानावस्था में । न भोजन, न पानी, फिर भी केवल ज्ञान की प्राप्ति से दूर थे। । भगवान् ने यह स्थिति समझ दोनों पुत्रियों- साध्वी ब्राम्ही व साध्वी सुंदरी को ' भेजा। दोनों की युक्ति युक्त बात से बाहुबली समझे और वंदन हेतु प्रस्थित होते ही उन्हें केवल ज्ञान प्राप्त हो गया। सम्राट् भरत को एक छत्र साम्राज्य मिल जाने के बाद भी भीतर में शांति नहीं थी। उन्हें इस बात का दुःख था कि राज्य सुख के लिए मैंने अपने सभी भाइयों को खो दिया। शासन करते हुए भी भरत के मन में अब कोई आसक्ति नहीं थी। एक दिन आरिसा भवन (Glass house) में अनित्य अनुप्रेक्षा में उन्हें केवल ज्ञान प्राप्त हो गया। जैनेतर साहित्य में ऋषभ का वर्णन जैन साहित्य में भगवान् ऋषभ का सविस्तर वर्णन स्थान-स्थान पर उपलब्ध होता है उसी प्रकार वैदिक व बौद्ध साहित्य में भी उनका कई स्थलों पर उल्लेख मिलता है। पुराणों में ऋषभ की वंश परम्परा को इस तरह बताया है. ब्रह्माजी ने अपने समान प्रथम मनु को बनाया। फिर मनु से प्रियव्रत और प्रियव्रत से आग्नीध्र आदि दस पुत्र हुए। आग्नीध्र से नाभि व नाभि से ऋषभ हुए। ऋषभ के परिचय के बारे में पुराण कहते हैं- नाभि की प्रिया मरुदेवा की कुक्षि से अतिशय क्रांति वाले बालक ऋषभ का जन्म हुआ। राजा ऋषभ ने धर्मपूर्वक राज्य का शासन किया तथा विविध यज्ञों का अनुष्ठान किया। अपने वीर पुत्र भरत को उत्तराधिकार सौंप कर तपस्या के लिए पुलहाश्रम की ओर प्रस्थित हो गये।
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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