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________________ भगवान् श्री ऋषभदेव/२७ कला-प्रशिक्षण राजा ऋषभ ने लोगों को स्वावलंबी व कर्मशील बनाने के लिए विविध प्रकार की शिक्षा दी, कला का प्रशिक्षण दिया। उन्होंने सौ शिल्प और असि, मसि, कृषि रूप कर्मों का सक्रिय ज्ञान कराया। शिल्प ज्ञान में कुंभकार कर्म, पटाकार कर्म, वर्धकी कर्म आदि सिखाये। इसके साथ ही ऋषभ ने अपने ज्येष्ठ पुत्र भरत को निम्नांकित बहत्तर कलाएं सिखाई१. लेख - लिपि कला और लेख विषयक कला २. गणित - संख्या कला। ३. रूप - निर्माण कला। ४. नाट्य - नृत्य कला। ५. गीत - गायन विज्ञान। ६. वाद्य - वाद्य विज्ञान। ७. स्वरगत - स्वर विज्ञान। ८. पुष्करगत - मृदंग आदि का विज्ञान । ९. समताल - ताल विज्ञान। १०. द्यूत - द्यूत कला। ११. जनवाद - विशेष प्रकार की चूत कला । १२. पुरः काव्य - शीघ्र कवित्व। १३. अष्टापद - शतरंज खेलने की कला १४. दकमृत्तिका - जल शोधन की कला । १५. अन्नविधि - अन्न-संस्कार कला। १६. पानविधि - जल-संस्कार कला। १७. लयनविधि - गृह-निर्माण कला १८. शयनविधि - शय्या-विज्ञान या शयन विज्ञान। १९. आर्या - आर्या-छन्द । २०. प्रहेलिका - पहेली रचने की कला। २१. मागधिका - मागधिका छन्द । २२. गाथा - संस्कृत से इतर भाषाओं में निबद्ध आर्या छन्द । २३. श्लोक - अनुष्टुप् छन्द । २४. गंधयुक्ति - पदार्थ को सुगंधित करने की कला । २५. मधुसिक्थ - मोम के प्रयोग की कला। २६. आभरणविधि - अलंकरण बनाने या पहनने की कला।
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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