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________________ ० / तीर्थंकर चरित्र ४६-नरोत्तम ४९- सुसेण ५२ - पुष्पयुत ५५- सुसुमार ५८-सुधर्मा ६१-आनन्द ६४ - विश्वसेन ६७- विजय ७०-अरिदमन ७३-दीर्घबाहु ७६-विश्व ७९-सेन ८२-अरिंजय ८५-नागदत्त ८८ - वीर ९१-पद्मनाभ ९४ - संजय ९७ - चित्तहर १०० - प्रभंजन ४७-चन्द्रसेन ५०-भानु ५३-श्रीधर ५६ - दुर्जय ५९-धर्मसेन ६२-नन्द ६५ - हरिषेण ६८ - विजयन्त ७१-मान ७४-मेघ ७७ - वराह ८०- कपिल ८३-कुंजरबल ८६- काश्यप ८९-शुभ ९२- सिंह ९५-सुनाम ९८ - सुखर ४८ - महसेन ५१-कान्त ५४ दुर्द्धर्ष ५७- अजयमान ६०-आनन्दन ६३- अपराजित ६६-जय ६९ प्रभाकर ७२-महाबाहु ७५- सुघोष ७८-वसु ८१-शैलविचारी ८४ - जयदेव ८७-बल ९०-सुमति ९३-सुजाति ९६- नरदेव ९९-दृढ़रथ दिगम्बर परम्परा के आचार्य जिनसेन ने भगवान ऋषभदेव के १०१ पुत्र माने हैं। एक नाम वृषभसेन अधिक दिया है। भगवान् ऋषभदेव की दो पुत्रियों के नाम हैं - १- ब्राह्मी, २- सुन्दरी । राज्याभिषेक कुलकर नाभि के पास प्रतिदिन यौगलिकों की बहुत अधिक शिकायतें आने लगी थी । दण्ड संहिता निस्तेज होती जा रही थी । प्रतिदिन अभाव बढ़ता जा रहा था। कुलकर नाभि के पास इनका कोई समाधान नहीं था। शिकायत आने पर किसी को कुछ कहते तो जबाब मिलता- 'भूखा था, आप पेट भरने का प्रबंध कर दीजिये, फिर ऐसी गलती नहीं होगी। पेट भरने का उपाय कुलकर नाभि के पास भी नहीं था अतः सिर्फ दण्ड संहिता से काम नहीं चल पा रहा था। जहाँ कहीं फल वाले वृक्ष होते वहीं छीना-झपटी प्रारंभ हो जाती थी। फिर वे ही युगल शिकायतें लेकर नाभि कुलकर के पास आते थे। कुलकर नाभि समस्याओं से अत्यन्त परेशान थे । वे चाहते थे कि किसी प्रकार इस दायित्व से छुटकारा मिले T
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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