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________________ १६/तीर्थंकर चरित्र वजनाभ के रूप में उत्पन्न हुआ। उसके पिता महाराजा वज्रसेन व माता महारानी धारिणी थी। गर्भ-काल में माता ने चौदह महास्वप्न देखे। आगे जाकर वज्रनाभ छह खंड का स्वामी चक्रवर्ती बना। उसके पूर्वभव के चार मित्र बाहु, सुबाहु, पीठ, महापीठ नाम से सहोदर रूप में पैदा हुए। अपने पिता राजर्षि वज्रसेन के उपदेश से प्रभावित होकर वज्रनाभ ने अपने सहोदरों के साथ दीक्षा व्रत स्वीकार किया। संयमी बनकर लंबे समय तक तपस्या व साधना की और उत्कृष्ट अध्यवसाय में तीर्थंकर नामकर्म का उपार्जन किया। वहां से बारहवें भव में वे सर्वार्थसिद्ध महाविमान में उत्पन्न हुए। वहां से च्यवकर वज्रनाभ भगवान् ऋषभ बने । बाहु व सुबाहु भरत व बाहुबली बने । पीठ व महापीठ ब्राह्मी व सुंदरी के रूप में उत्पन्न हुए। ऋषभ का जन्म ऋषभ का जीव सर्वार्थसिद्ध देवलोक से च्यवकर नाभि कुलकर की जीवनसंगिनी मरुदेवा की पवित्र कुक्षि में अवतरित हुआ। उसी रात्रि में माता मरुदेवी ने चौदह महास्वप्न देखे । वे इस प्रकार हैं :१- वृषभ २- हाथी ३-सिंह ४- लक्ष्मी ५- पुष्पमाला ६- चन्द्र ७- सूर्य ४- महेन्द्र ध्वज ९- कुंभ १०- पद्म सरोवर ११- क्षीर समुद्र १२- देव-विमान १३– रत्नराशि १४- निर्धूम-अग्नि। स्वप्न-दर्शन का भी अपना महत्व है। गर्भ के प्रारम्भ में स्वप्न-दर्शन गर्भगत प्राणी के शुभाशुभ भविष्य की सूचना मानी जाती है। स्वप्न शास्त्र में वैसे बहत्तर शुभ स्वप्नों का विवेचन है, उनमें तीस महास्वप्न माने गये हैं। उन तीस महास्वप्नों में चौदह महास्वप्न तीर्थंकर और चक्रवर्ती की माता देखती है। दिगम्बर ग्रन्थों में तीर्थंकर की माता के सोलह स्वप्न देखने का उल्लेख है। पूर्वोक्त चौदह के अतिरिक्त मत्स्य युगल तथा सिंहासन ये दो स्वप्न और बताये गये हैं। वासुदेव की माता सात तथा चार स्वप्न बलदेव की माता देखती है। मांडलिक राजा (जन नेता) या भावितात्म-अणगार की माता एक स्वप्न देखती है। इन स्वप्नों के आधार पर गर्भगत आत्मा के पण्य प्रभाव का अनमान स्वप्न-शास्त्री लगा लेते थे। माता मरुदेवा चौदह स्वप्नों को देखकर हर्ष विभोर हो गई। अज्ञात खुशी से उनका मानस उछलने लगा। रोम-रोम पुलकित हो उठा। मरुदेवा ने अपने पति नाभि कुलकर से कहा- आज मैंने चौदह स्वप्न देखे हैं। प्राणनाथ! इन स्वप्नों को देखने के बाद मेरा मन- मानस हर्ष विभोर हो उठा है। प्रसन्नता हृदय में नहीं समा रही है। विस्मित नाभि कुलकर ने पूछा- प्रिये! वे कौन से स्वप्न थे जिनसे तुम हर्षविभोर हुई हो, बताओ तो? मरुदेवा ने एक-एक कर स्वप्नों में देखे दृश्य गिनाये। स्वप्नों को सुनकर नाभि कुलकर चकित हो उठे । नाभि कोई स्वप्नवेत्ता नहीं
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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