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________________ तीर्थंकर चरित्र / ११ इसी प्रकार तीर्थंकरों को चौतीस अतिशय (विशेषताएं), पेंतीस वचनातिशय ( वाणी की विशेषताएं) सहज प्राप्त होती हैं। दूसरे सर्वज्ञों में इनका होना आवश्यक नहीं है। ये विशेषताएं उनमें मिलती भी नहीं है। किसी में दो, किसी में चार विशेषताएं मिल जाये तो लोगों में उसका भी आश्चर्य जनक प्रभाव रहता है। तीर्थंकर तो पूर्ण अतिशयों के धारक होते हैं। चौतीस अतिशय १. देह - अद्भुत रूप व गंध वाला, निरोग, पसीना व मल रहित । २. श्वास- कमल जैसी सुगंध । ३. रुधिर मांस - गाय के दूध की भांति सफेद । ४. आहार- नीहार विधि- यह अदृश्य होती है। ये चार तीर्थंकर के जन्म से ही प्राप्त होते हैं। ५. एक योजन प्रमाण क्षेत्र में भी बहुत बड़ी संख्या में मनुष्य, देव और तिर्यंच रह सकते हैं। ६. वाणी-अर्धमागधी भाषा में दिया हुआ प्रवचन सभी मनुष्य एवं पशु-पक्षी भी समझ लेते हैं । ७. भामंडल - मस्तक के पीछे अति देदीप्यमान सुंदर प्रभामंडल होता है । ८. रुजा - तीर्थंकर जहां प्रवासित होते हैं वहां से एक सौ पचीस योजन तक रोग नहीं होता । ९. वैर - एक सौ पचीस योजन तक परस्पर वैर भाव नहीं होता । १०. ईति - धान्य आदि को नुकसान पहुंचाने वाले चूहे, कीट आदि की उत्पत्ति एक सौ पचीस योजन तक नहीं होती ११. मारी - एक सौ पचीस योजन तक महामारी नहीं होती या अकाल मौत नहीं होती । १२. अतिवृष्टि - एक सौ पचीस योजन तक अतिवृष्टि नहीं होती । १३. अनावृष्टि - एक सौ पचीस योजन तक बरसात न हो ऐसा नहीं होता । १४. दुर्भिक्ष - एक सौ पचीस योजन तक दुष्काल नहीं पड़ता । १५. भय - एक सौ पचीस योजन तक किसी प्रकार का भय नहीं होता । ये ११ अतिशय कर्म क्षय से प्राप्त होते हैं । १६. आकाश में धर्मचक्र चलता है। १७. आकाश में चमर वीजन होता है। १८. पादपीठिका सहित उज्ज्वल स्फटिक मय सिंहासन होता है । १९. आकाश में तीन छत्र होते हैं। २०. आकाश में रत्नमय ध्वजा फहराती है ।
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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