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________________ तीर्थंकर चरित्र/५ ० घर, गांव, कस्बे व शहर नहीं थे। ० संग्रह व विग्रह का कहीं स्थान नहीं था। ० अस्त्र-शस्त्र नहीं थे। ० स्थूल अग्नि नहीं थी। ० अपक्वभोजी थे। ० रोग व बुढ़ापा नहीं सताता था। ० उपघात (अकाल मृत्यु) नहीं थी। ० गाय, भैंस, अश्व आदि पालतु पशु नहीं थे। ० क्रियात्मक शिक्षा नहीं थी। ० सामायिक, पौषध आदि क्रियात्मक धर्म नहीं था। ० करोड़ पूर्व से अधिक आयुष्य होता था। ० असि, मषि व कृषि कर्म नहीं था। यौगलिकों का जीवन स्तर समान था, अतः किसी में ईर्ष्या नहीं थी। ऊंच-नीच की भावना नहीं थी। सभी समान रूप से प्रकृति की गोद में पलने वाले थे। जनसंख्या सीमित थी। हर युगल-दम्पत्ति के एक ही युगल पुत्र-पुत्री के रूप में उत्पन्न होता था। बचपन में वे भाई-बहिन के रूप में रहते । जीवन के संध्याकाल में वे एक युगल (पुत्र-पुत्री) को जन्म देते और कुछ ही समय में वे मृत्यु को प्राप्त हो जाते । यह क्रम पूरे यौगलिक काल में चलता रहा था। कुलकर व्यवस्था अवसर्पिणी के पहले, दूसरे व तीसरे अर के आधे से अधिक समय तक उपरोक्त व्यवस्था सुचारू रूप से चलती रही। उसके बाद इस व्यवस्था में हास शुरू हो गया । पृथ्वी के रूप, रस, गंध, स्पर्श आदि का पूर्वापेक्षया हास हो गया । कल्पवृक्षों के क्रमिक विलोप होने से खाने-पीने, रहने तथा अन्य जीवनोपयोगी सामग्री अपेक्षा से कम उपलब्ध होने लगी। जब कभी व्यक्ति के जीवनोपयोगी वस्तुओं का अभाव होता है तो भयावह स्थिति पैदा हो जाती है। इससे जन मानस आंदोलित हो जाता है। यौगलिकों के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ । वे अभाव की पीड़ा से अपरिचित थे। उन्हें सुखद व्यवस्था का छिन्न-भिन्न होना अस्वाभाविक लगा। ज्योंही उनके सामने अभाव की स्थिति आई, सब चिंतित हो गये। 'संग्रह' शब्द उनके शब्दकोष में नहीं था, अतः फलों का प्रबंध करना उनके लिए कठिन हो रहा था। वृक्ष सूखने लगे, फलों की मात्रा कम हो गई अंततः फलों को हथियाने की भावना पनप उठी। उन्होंने अधिकाधिक संख्या में वृक्षों पर अधिकार करना शुरू कर दिया, छीना-झपटी चलने लगी। पूरे यौगलिक क्षेत्र में आतंक व्याप गया। घनघोर अव्यवस्था छा गई।
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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