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________________ भगवान् श्री महावीर/२०३ देव वद्धांजलि हो बैठ गये, पर भगवान् के मुखारविन्द से दिव्य ध्वनि (प्रवचन) प्रकट नहीं हो सकी। बासठवां दिन हो गया। इंद्र को चिंता हुई, अवधि ज्ञान से कारण जानना चाहा तो पता चला- गणधर के अभाव में दिव्य ध्वनि नहीं निकल रही है। इन्द्र ने भव्यात्मा की खोज की और इन्द्रभूति गौतम को योग्य जानकर वे विद्यार्थी का रूप बनाकर उनके पास आये और बोले-मेरे गुरु ने मुझे गाथा सिखलाई थी, अब वे मौन हैं, अतः आप उसका अर्थ बताइये ।' इन्द्रभूति सशर्त बताने के लिए तैयार हुए- यदि मैं बता देता हूं तो मेरा शिष्यत्व स्वीकार करना पड़ेगा। इन्द्र ने हामी भर दी और गाथा प्रस्तुत की पंचेव अत्थिकाया, छज्जीवणिकाया महव्वया पंच। अट्ठ य पवयणमादा, सहेउओ बंध मोक्खो य।। षट्खंडागम।। यह गाथा सुनकर इन्द्रभूतिजी असमंजसता में पड़ गये। पांच अस्तिकाय, षड् जीवनिकाय, पांच महाव्रत, आठ प्रवचनमाता क्या है, कौन-कौन सी है? छह जीव निकाय का नाम सुनकर उनकी दबी हुई शंका और तीव्रता से उभर कर आ गई। इन्द्रभूति ने कहा- चल, तेरे गुरु के पास ही इस गाथा का अर्थ बताऊंगा। दोनों भगवान् के पास आये |भगवान् ने “गौतम"नाम से संबोधित किया और जीव के अस्तित्व से संबंधित उनकी शंका का निवारण किया। इन्द्रभूति अपने विद्यार्थियों के साथ भगवान् के शिष्य हो गये। उसके बाद भगवान् ने दिव्य देशना दी। अवशिष्ट दस पंडित भी अपने शिष्य समुदाय के साथ दीक्षित हो गये। ग्यारह ही गणधरों के कितने शिष्य थे, क्या शंका थी? इसका विवरण इस प्रकार हैगणधर शिष्य १. इन्द्रभूति ५०० आत्मा का अस्तित्व २. अग्निभूति ५०० पुरुषाद्वैत ३. वायुभूति तज्जीव-तच्छरीरवाद ४. व्यक्त ५०० ब्रम्हमय जगत् ५. सुधर्मा जन्मान्तर ६. मंडित ३५० आत्मा का संसारित्व ७. मौर्यपुत्र देव और देवलोक ८. अकंपित ३०० नरक और नारकीय जीव ९. अचलभ्राता पुण्य-पाप १० मेतार्य ३०० पुनर्जन्म ११. प्रभास ३०० मुक्ति शंका ५०० ५०० ३५० ३००
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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