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________________ भगवान् श्री महावीर/१९९ को पकड़ लिया। भगवान् के शरणागत बनने से शक्रेन्द्र ने चमरेन्द्र को क्षमा कर दिया और भगवान् को वंदना कर स्वस्थान चले गये। चंदना का उद्धार ___ सुसुमार से विचरते हुए भगवान् कौशम्बी पधारे । पोष कृष्णा एकम को भगवान् ने तेरह बोलों का भारी अभिग्रह स्वीकार किया। तेरह बोल इस प्रकार है १. राजकन्या २. बाजार में बेची हुई ३. सिरमुण्डित ४. सिर में गद के घाव ५. हाथों में हथकड़ी ६. पैरों में बेड़ी ७. तीन दिन की भूखी ८. भोहरे में हो ९. आधा दिन बीतने के बाद १०. एक पैर देहली में और एक उसके बाहर ११. सूप के कोने में १२. उड़द के बाकले १३. आंखों में आंसू हो। इन तेरह बोल रूप अभिग्रह को धारण कर भगवान् प्रतिदिन नगरी में भिक्षा के लिए धूमते परंतु कहीं भी अभिग्रह पूर्ण नहीं हुआ। पूरी नगरी में यह चर्चा हो गयी कि हमारे से ऐसी क्या भूल हो गई जो भगवान् बिना कुछ लिए यों ही लौट जाते हैं। इस तरह चार माह बीत गये। एकदा महावीर महामात्य सुगुप्त के घर पधारे। महामात्य की पत्नी नंदा जो स्वयं श्रमणोपासिका थी, ने शुभ भावना के साथ आहार देने के लिए समुपस्थित हुई। अभिग्रह पूर्ण न होने से भगवान् चले गये। इस पर नंदा को बहुत दुःख हुआ। दासियों ने बताया- 'ये तो प्रतिदिन ऐसे ही आकर लौट जाते हैं। नंदा ने अपने पति महामात्य के सामने चिंता प्रकट की। महारानी मृगावती को जब इसकी अवगति मिली तो महाराज शतानीक से पता लगाने को कहा, किंतु कुछ भी पता न चल सका। भगवान् के अभिग्रह को पांच महीने संपन्न हो चुके थे। छठा महीना पूरा होने में मात्र पांच दिन शेष थे। हमेशा की भांति भगवान् भिक्षाटन करते-करते धनावह सेठ के घर पहुंचे। चदना ने ज्योंही तरणतारण की जहाज भगवान् महावीर को देखा तो उसका वदन खिल उठा। एक बारगी सारा दुःख भूल गई। उसने भिक्षा लेने की प्रार्थना की, पर एक बोल पूरा न होने से भगवान् आगे बढ़ गये तो चंदना
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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